चिंतन
कवितायेँ और कहानियां
17 अगस्त 2011
क्यूँ ?
जीवन-आकाश में
पंक्तिबद्ध उड़ते सफ़ेद बगुले
सपनों के .....
क्यूँ मिटा देता है कोई
वो लकीर
हर बार/बार बार
1 टिप्पणी:
संगीता स्वरुप ( गीत )
17 अगस्त 2011 को 11:22 am बजे
ओह ..गहन प्रश्न ..
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