4 नवंबर 2012

कतरनें


कई चीज़ों को ना जानना ही अपने को सुरक्षित रखने का रास्ता है |...(निर्मल वर्मा)
इस छोटे से वाक्य का तात्पर्य  अपने में अनेक तर्क, संभावनाएं और एक वैचारिक विराटता को समेटे हुए है | सर्व ज्ञाता होने की अदम्य और आदिम इच्छा मनुष्य को सपनों के एक वीरान जंगल में ले जाती है , जहां विषयों की भीड़ और अराजकता है,कुछ होने और कुछ भी ना होने के बीच का एक खालीपन है जो हमें एक अदेखे अजाने अनुभव की प्यास की अनुभूति कराता है पर महत्वाकांक्षाओं की अभीप्सा में हम उस राह से चूक जाते हैं जो अज्ञात में है .. एकांत और कुछ अलग पाने की इस भीड़ में कुछ भी ना पा पाने की एक कुलबुलाहट लिए स्वयम को खो जाते हुए देखते है और यहीं वक़्त होता है जब हम  अपने sence of innocence  को अपने से दूर जाता हुआ देख रहे होते है जो शायद अब कभी नहीं मिलेगा
निर्मल वर्मा को पढ़ना सपनों की उस ज़मीन से गुजरना है जो पूरी तरह हवा से बनी है ....उनके पहले वाक्य को पढते हुए पाठक सपनों की एक घाटी जो सुगंधो और भीनी हवाओं से भरी है में प्रवेश करता है ओर उनके अंतिम वाक्य पर उसे लगता है जैसे वो किसी गहरी तन्द्रा से जागा हो ...किसी स्वप्न की सुरंग से निकल अपनी स्रष्टि के धरातल पर आ गया हो | एक अदम्य जिजीविषा का उदय होता है किसी भी जेन्युइन लेखक को पढकर फिर भी ना जाने क्यूँ जीवन में कुछ ज़रूरी हमेशा बना रहता है |बकौल निर्मल वर्मा ‘’इतनी चेतना हमेशा बनी रहनी चाहिए कि आप अपनी चेतना को माचिस की तीली की तरह बुझते हुए देख सकें ‘’|

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