प्रथ्वी के गोल होने के साक्ष्य
और भी बहुतेरे हैं
जुगराफिया सबूतों के अलावा
बाइबल के सत्य (?)और
गेलीलियो /कोपर्निकस के विवादों
और वैचारिक टकराहटों से परे भी
असत्य सत्य पर शास्वत सत्य के वुजूद से इतर
अतीत के धुंधले अंधेरों में
कुछ प्रश्न-चिन्ह आज भी खड़े हैं
सलीबों की मानिंद
ठुकी हुई हैं कीलें
हर काल की हथेली पर
अपने तमाम ज्ञानों, आदर्शों ,और
उपलब्धियों को झोली में भरे
औरत
प्रथ्वी के चक्र के साथ
अंततः
उसी बिंदु पर आकर मिलती हैं
दुनिया की सबसे पहली औरत से
शिकायत करती है हर युग की
विकास और आधुनिकता के
हज़ारों दम्भों के बावजूद
जो अंतत छलता रहा है
उसके वुजूद को ही
पूछती हैं वो उससे
फिर
क्यूँ दुनियां के नक़्शे में
छाई हुई है औरत ही
और ,
क्यूँ वैश्विक कलाएं ,साहित्य ,त्रासदियाँ
घूम फिरकर
टिका लेते हैं सिर औरत के कंधे पर ही ?
दोनों ही स्थायित्व और प्रकृतिनोन्मुख..
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