14 अगस्त 2011

सिफ़र



 ना ज़न्म का अंत ,
ना म्रत्यु का आदि .....
फिर क्या है वो रहस्य जो आदमी
दाबे फिरता है मुट्ठी में अपनी
  खोल देती है म्रत्यु जिसे
झाडकर हथेली ..... 

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