11 दिसंबर 2010
बे -ख्वाब
अब ये ज़रूरी नहीं
कतई ,कि
स्वप्न आने के लिए
नींद का होना
हो ज़रूरी!
नितांत जागते हुए भी
देखती हूँ सपने ,
जैसे...
चांदनी से झिलमिलाती
खूबसूरत रात में
लंबी सुनसान सड़क पर
टहलने के
बेख़ौफ़...अकेले !
जैसे.....
अलस्सुबह ,अँधेरी धुआती
कच्ची झोंपड़ी से
शोकगीत की जगह
प्यार के स्पन्दन के!
जैसे.....
अँधेरी सीलन भरी
झोपडी में
बकायदा एक हिस्सा
रौशनी और धुप के
जैसे ....
खेत खलिहानों की
बेफिक्र और
आजाद हंसी के
जैसे.....
अन्नदाता के नौनिहालों की ,
भरपेट मुस्कराहट के !
जैसे......
घर से निकलते हुए
वापिस लौट आने के
पुख्ता यकीन के !
पर हमेशा ही
होता है यूँ कि
सपनों में घुलने
लगता है
एक दमघोंट अँधेरा
चौंधियाने लगती हैं
आँखें
घिरने लगते हैं
सपने
और फिर
गहरी नींद
सो जाती हूँ,मै
बेख्वाब ....!
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बहुत खूबसूरत सपने ...और फिर गहरी नींद तो आनी ही हुई ...अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बहुत ही सुन्दर सपने आकार लेते हैं।
जवाब देंहटाएंख्वाब देखते हुवे जीना और बेख्वाब हो कर सो जाना .... क्या गज़ब का एहसास लिए है आपकी रचना ... बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अहसास..काश ये ख्वाब सच हो जाएँ...उत्कृष्ट प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंत्रासद स्थिति का प्रभावशाली चित्रण किया है आपने...
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय रचना...
sunder abhi vayakti....aur shirshak chayan bekhavab ......
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ,आप कि आत्मीयता से मैं अभीभूत हूँ सच!आपकी टिप्पणी मेरे लिए हमेशा ही प्रेरणा रही है!अप मेरी कविताओं को ''चर्चा मंच''में प्रकाशित करती हैं मैं आपकी हार्दिक आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंकृपया संपर्क बनाये रखिये
धन्यवाद
वंदना
कैलाश जी ,स्वागत है आपका!आपको कविता अच्छी लगी ..आभारी हूँ आपकी !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वंदना जी ,बहुत बहुत धन्यवाद आपको ! संपर्क बनाये रखें
जवाब देंहटाएंसाभार
वंदना
आप सभी का बहुत आभार
जवाब देंहटाएंवंदना
sunder rachna!
जवाब देंहटाएंसत्यम जी
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद आपको कविता पढ़ने और सराहने के लिए!आपका ब्लॉग अवश्य पढूंगी .शुभकानाएं
वंदना
सुन्दर अहसास की उत्कृष्ट प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारे एहसाह भरे है इस कविता में..दिल को छू लिए... सुंदर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंthanx ...rachnaji...upendraji
जवाब देंहटाएंvandana
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
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