5 दिसंबर 2010

उलझन


जब भी देती हूँ बेटे को
सच बोलने की नसीहत
अपराधबोध से झूठ के 
घिर जाती हूँ मै!
वो पूछता है मुझसे
सच बोलना क्या होता है?
क्या वो जो
सत्यवादी हरिश्चंद्र  या  
गांधी ने बोला था?
मै कहती हूँ नहीं
अब सत्य  भी लिखा कर लाता है 
उम्र अपनी ,
अपने कंधे पे टांग ,
आदमी की तरह,
आदमी के साथ , ताकि 
भीष्म होने की वेदना 
से बच  सके!
और शायद 
ज़रुरत का लिहाज़ कर 
अब अर्थ भी बदल लिए हैं 
सच ने अपने ...बदलते फैशन के साथ!
बेटा अपनी
 मासूम  
 आँखों के सपने 
टांग  देता है मेरी 
खोखली आस्था की खूंटी   पर 
निरुत्तर हो जाती हूँ सहमकर 
शब्द अटक जाते हैं हलक में
पर कहना चाहती हूँ उससे 
की सच का सच है ,,
किसी फूल का  हंसते हुए खिलना
मुरझाने तक ...
कि....
किसी प्यार का 
चमकदार होना 
ओस कि बूँद की तरह .....
पिघल जाने तक...
कि .
यकीन  को जीने के 
अनंत  से निहारना
क़यामत     तक....
कि
पानी को बादल  की तरह घिरना  और
आंसू को  सपने की तरह खिलना
झिलमिलाने तक.....
और तब देखती हूँ उसे मै
देखते हुए ,
एक उदास सी चुप्पी 
के साथ किसी जंगल में
खड़ा 
पाती हूँ उसे.... 
प्रतीक्षारत...!.
.....

22 टिप्‍पणियां:

  1. जब भी देती हूँ बेटे को
    सच बोलने की नसीहत
    अपराधबोध से झूठ के
    घिर जाती हूँ मै!

    nice....carry on..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही गंभीर रचना ...मन के उलझन का बिलकुल सही चित्रण
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. इंसानी जीवन में जब इस तरह के जीवन रूपी उलझन का सगीत बजता है तब इन्सान को ...खुद को दोराहे पर खड़ा पता है ...पर ...अंतत विजय उसके सत्य के पथ की ही होती है ...पर रास्ते बड़े कांटे भरे होते है ...फिर भी हम आपने आने वाली पीडी को इसी तरह का सन्देश दे पायें तो शायद आने वाली पीडी भी इस काँटों भरे रास्ते पर चलना सीखे और ...उसके जीवन मूल्यों को फूलों से भर पाए ?!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छा विषय , अच्छी कविता . भाषा पर थोड़ा काम खोजता था शायद .

    जवाब देंहटाएं
  5. अब सत्य भी लिखा कर लाता है
    उम्र अपनी ,
    अपने कंधे पे टांग ,
    आदमी की तरह,
    आदमी के साथ , ताकि
    भीष्म होने की वेदना
    से बच सके!
    वाह! वंदना जी कितनी गहरी और सूक्ष्म अनुभूत सत्य कहा है..आभार अपर्णा जी! पढवाने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  6. सत्य भी लिखा कर लता है उम्र .....बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति ..

    जवाब देंहटाएं
  7. वरुण जी ,विजयजी ,ट्रेवल ट्रेड ....बहुत बहुत धन्यवाद आपका ,कविता सराहने के लिए!
    साभार
    वंदना

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत बहुत धन्यवाद राजू रंजन जी आपका, कविता पढ़ने और मार्गदर्शन करने के लिए!उम्मीद करती हूँ की भविष्य में भी आपका मार्गदर्शन मुझे लिखने की प्रेरणा देता रहेगा साभार
    वंदना

    जवाब देंहटाएं
  9. नवनीत जी एवं संगीता जी
    बहुत बहुत धन्यवाद प्रोत्साहन के लिए!आपको कविता अच्छी लगी यही मेरी कविता की सार्थकता और सफलता है
    साभार
    वंदना

    जवाब देंहटाएं
  10. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना मंगलवार 07-12 -2010
    को छपी है ....
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    जवाब देंहटाएं
  11. bahut bahut dhanyawad sangeeta ji ....zaroor pratikriya dene ki koshish karungi
    vandana

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुन्दर भाव और कविता |बधाई
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  13. इंसानी जीवन के सत्य को उजागर करती एक बेहतरीन रचना।

    जवाब देंहटाएं
  14. बच्चे को सच बोलने की अच्छी सीख दे रही हैं आप खास तौर पर वर्तमान हालातों में जब चारो तरफ झूठ का ही करोबार नज़र आता है.मेरा एक दोहा है,आप भी देखें:-
    सच पर चलने की हमें,हिम्मत दे अल्लाह.
    काटों से भर पूर है , सच्चाई की राह.

    जवाब देंहटाएं
  15. हकीकत के भावों को संजोये है आपकी रचना..... बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत धन्यवाद आशाजी ,वंदनाजी ...आप मेरा ब्लॉग पढ़ रही हैं यही मेरे लेखन की सफलता है .
    साभार

    जवाब देंहटाएं
  17. वह कुंवर कुसुमेश्जी.बहुत सुन्दर दोहा...ब्लॉग पर स्वागत है आपका ..सराहने के लिए धन्यवाद
    वंदना

    जवाब देंहटाएं
  18. धन्यवाद अनुपमा जी मोनिका जी ....ब्लॉग पर स्वागत है आपका ..प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
    वंदना

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत बहुत धन्यवाद पांडेयजी.प्रोत्साहन के लिए ब्लॉग पर स्वागत है आपका .
    vandana

    जवाब देंहटाएं
  20. सत्य को उजागर करती एक बेहतरीन रचना।

    जवाब देंहटाएं