एक बादल,शब्दों का
रास्ता भटक ,
घिर आया था
अवछन्न आसमा पर ,
भीगीं संवेदनाएं ,
सराबोर होने तक
डूबी आकंठ, निर्दोषिता,
उग आये कुछ अर्थ
बेनाम रिश्तों के
शिराओं में
चमकता/बहता इन्द्रधनुष
समां सके जो तेरी आँखों में
बस इतना ही था आसमा मेरा !
मिटाना चाहती हूँ
छद्म के
उस इतिहास को मै ,
समय की पीठ पीछे
जो दुबका सा खड़ा है!
चमकता/बहता इन्द्रधनुष
जवाब देंहटाएंसमां सके जो तेरी आँखों में
बस इतना ही था आसमा मेरा
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ...अच्छी प्रस्तुति
बहुत खूबसूरत भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबड़े ही सुन्दर विम्बों से सजी रचना!
जवाब देंहटाएंbhut hi sundar sabd chayan....sundar comparision.....behad aakrshak.
जवाब देंहटाएंवंदना शुक्ला जी कविता का अंतिम हिस्सा करामाती है| अभिनंदन|
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, वंदना जी पुनः स्वागत है आपका !चर्चा मंच पर कविता प्रकाशित करने के लिए आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वंदना
सत्यम जी
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका ...बहुत धन्यवाद
वंदना
नवीन जी
जवाब देंहटाएंआपको कविता अच्छी लगी,जानकर अच्छा लगा
आभार
वंदना
चमकता/बहता इन्द्रधनुष
जवाब देंहटाएंसमां सके जो तेरी आँखों में
बस इतना ही था आसमा मेरा !
बहुत सुन्दर भाव और एहसास ....
मिटाना चाहती हूँ
जवाब देंहटाएंछद्म के
उस इतिहास को मै ,
समय की पीठ पीछे
जो दुबका सा खड़ा है!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
एक बादल, शब्दों का
जवाब देंहटाएंभीगी संवेदनायें
वाह ! क्या बात है ।
बहुत सुन्दर भाव और एहसास ...
जवाब देंहटाएंआप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवंदना
bahut sunder rachna.
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