चिंतन
कवितायेँ और कहानियां
17 जून 2011
यूँ भी तो हो सकता था
कि हम कुछ कहते ही नहीं, और वो सुन लेते
या यूँ, कि हम कहते और
वो खड़े हो जाते विवेक के बल
पर यूँ नहीं होना चाहिए था
कि जो हमने सोचा भी नहीं
और वो कर दिया उन्होंने
जो उन्हें नहीं करना चाहिए था
1 टिप्पणी:
Patali-The-Village
17 जून 2011 को 11:27 pm बजे
सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
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