वो वादे जिनकी बुनियाद धोखे की साजिश ,
नहीं किये जाने चाहिए ?
जो सौंपते हैं अपना यकीं भोजन के बदले तुम्हे
उन्हें कसमों की तरह नहीं खाना चाहिए!
और तुम,जो ‘गोबर’ के बैल की तरह
बंध जाते हो किसी भी खूंटे पर
किस सूद के बदले ?
कब जानोगे इस साजिश को कि
तेल किसी बीज से नहीं ,
निचोड़ा जा रहा है तुम्हारे जिस्म से
तुम्हारे होश को खूंटे में बाँध
कोल्हू के आसपास अभिमंत्रित हुए चकराते तुम
खोल फेंको आँखों की पट्टी जिसने सोख लिए हैं आँसू
युद्ध का शंख फूंकते तो सदियाँ गुजर गईं हैं
कुछ कर पाए क्या?
क्यूँ चैनलों ने खोल रखी हैं पाठशालाएं ?
क्या ‘’अच्छे इंसान’’बनने बंद हो गए हैं अब ?
यदि नहीं तो अच्छाई कहाँ छिपा दी गई है उनकी ?
किस खोह के भीतर ,
कौन सा वो युग जो दावा करता है तुमसे
सुकून से बीत जाने का?
कौन सा युग जिसका इतिहास
लिथड़ा ना हो खून से ?
कौनसा युग था बोलो स्त्री जहां
आंसुओं के तकिये पे नहीं सोई
कब तक सत् युग के सपनों से
कलियुग को भिगोते रहोगे?
जब तक लोक में रहकर
परलोक की फ़िक्र करना नहीं छोडोगे,
किसी पिछली सदी में उलझ कर मर जाओगे
अफीम की खेती अब प्रतिबंधित होना चाहिए
साजिशें समझो धर्म को बाजार बना देने की ,
खरीदना भक्तों को किसी व्यापार के तहत
और बेचना धर्म को उन्हें कोडियों के भाव
कब तक इंतज़ार करोगे अवतारों का
अधर्म का नाश करने को ?
थोडा तो नज़र घुमाओ अपनी
कि युग बदल जायेगा
पीड़ा से डरे बिना
ज़रा तो अकड़ी हुई गर्दन झटको
रीढ़ का महत्व समझ पाओगे
कब तक इंतज़ार करोगे अवतारों का
जवाब देंहटाएंअधर्म का नाश करने को ?
थोडा तो नज़र घुमाओ अपनी
कि युग बदल जायेगा
जोश से भरी रचना।
कौनसा युग था बोलो स्त्री जहां
जवाब देंहटाएंआंसुओं के तकिये पे नहीं सोई
कब तक सत् युग के सपनों से
कब तक इंतज़ार करोगे अवतारों का
अधर्म का नाश करने को ?
थोडा तो नज़र घुमाओ अपनी
कि युग बदल जायेगा
पीड़ा से डरे बिना
ज़रा तो अकड़ी हुई गर्दन झटको
रीढ़ का महत्व समझ पाओगे
गहन सोच को बताती अच्छी रचना