नारी, तुम नहीं अबला,
आजाद हो तुम अब ।
चीख-चीख कर कह रहे
तमाम चैनल,मंत्री,संतरी और स्वयं तुम
यही तो कह रही नारी दिवस पर,आयोजित वार्ताएं ।
टीवी स्क्रीन पर एक से एक ताजातरीन,
मुस्कराते चेहरे, चेहरों की नकल करते चेहरे
और चेहरे, और जिस्म
सच कहा तुमने,
अब औरत आजाद है
दौडो जहां तक दौड सकती हो,
खुला है आसमान, फैली है धरती
बगैर किसी नकेल के
सच कहा तुमने, अब आजाद है औरत
स्वयं को नग्नता की हद तक पेश करने के,
दारुखोर निकम्मे मर्दों और
आधे दर्जन बच्चों के निवाले के लिये,
हाड-मांस एक करती
पर जिंदा रहने की मोहलत के साथ
आजाद है औरत।
वेलेंटाइन डे के विरोधियों से, अपनी आजादी का दंभ भरती
हुंकारती,तर्क कुतर्क करने को, आजाद है औरत ।
जहरीली शराब पीकर मारे गए मजदूर की मौत के मौके पर
टीवी में दिखने, और मुआवजे की रकम पाने को
बिचैलियों के ठिकानों के बदस्तूर चक्कर लगाने को
आजाद है औरत ।
आतंकियों की गोली से भून दिये गये कांस्टेबल पति की
मरणेापरांत मैडल लेने को,या फिर
तपती दोपहर में दो की उगली थामे और
एक नोनिहाल को सूखे स्तन से चिपकाये,
नेताओं द्वारा दो जून का भोजन के वादे के साथ,
जुलूस में भीड बढाने को
आजाद है औरत ।
तथाकथित महातपस्वियों के, दानपुण्य के जलसों में
थाली लोटा लेने को बहराई,और भीड में कुचले जाने के लिये
आजाद है औरत ।
दमदार सास और दंुस्साहसी पति के बेढंगे आदशों को,
बेशर्मी से प्रस्तुत करते होड में भागते चैनल, और ये स्वीकारने कि
सीरियल तो प्रतिबिंब हैं समाज के
आजाद है औरत
और कितनी आजादी चाहिये तुम्हे?
बहुत शानदार कविता है । पोस्ट करने के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंteekha prahar karti hui behad umda prastuti...
जवाब देंहटाएंआपकी कविताओं को पढ़ने के लिए ना जाने क्यों बहुत हिम्मत बटोरनी पड़ रही है। बेहद तीखी अर्थवत्ता रखतीं हैं। कविताएँ ऐसी ही हों तो कुछ उम्मीद नज़र आती है।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com
व्यंग्य और व्यंग्यलोक
वंदना बिटिया
जवाब देंहटाएंआशीर्वाद
आपकी एक ही कविता पढ़ी बार बार पढ़ी
भारत की स्त्री को जाग्रत करना है लिखो जाग्रत की कविता
साथ दूँगी
गुड्डोदादी चिकागो से
स्वयं को नग्नता की हद तक पेश करने के,
जवाब देंहटाएंदारुखोर निकम्मे मर्दों और
आधे दर्जन बच्चों के निवाले के लिये,
हाड-मांस एक करती
पर जिंदा रहने की मोहलत के साथ
आजाद है औरत।
लगता है औरत आज़ादी का अर्थ दशा और दिशा भूल गयी है। बहुत सुन्दर कविता है। और आजकल की औरत और स्माज पर करारा कटाक्ष है। बधाई इस रचना के लिये।
एक गम्भीर अर्थ-बोध को समेटे सशक्त रचना वन्दबा जी।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
आजादी का भ्रम फैलाये इस समाज के दोहरेपन का आक्रोश पालती कविता ...
जवाब देंहटाएंजबरदस्त ....!!
धन्यवाद मित्रों, जब वैचारिक सैलाब धैर्य की सीमा पार कर प्रश्ठों पर अंकित होने लगता है तो सीमा का लिहाज करना थोडा मुश्किल हो जाता है ।आप जैसे सुधी पाठकों के विचार मेरे लिये बहुत मूल्यवान हैं ।
जवाब देंहटाएंवंदना
waah naari jaati ka ahvahan karti jordaar rachna....bahut khoob...
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