17 जून 2010

ख्वाब

हर शुरुवात एक मौन खूबसूरती का
पर्याय हुआ करती है
एक दुधमुंहे शिशु के
जीवन के रुप मे हो या फिर
तरोताजगी से भरी अधखिली गर्वित
नई नवेली कली के प्रस्फुटन की या फिर
रात के अंधेरे मे धने काले मेधों के
पर्दे से झांकती मदमाती मुस्कुराती सुबह की
काल के इस जादुई सम्मोहन में जकडे जीव द्धारा
समय के चक्र को फेरने के तमाम जतन
तमाम उपकरण औचित्यहीन हो जाते हैं अंततः ।
काश कि संपूर्ण जीवन ही होता
शुरुवात की तरह
आदि से अंत तक
सरल निश्छल और बिंदास तो
वो दुनियां ये दुनियां न होती
और तब अस्तित्वहीन हो जातीं
स्वर्ग की जादुई परिकल्पना
इस धरती से ।

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