26 जून 2010

स्वीकारोक्ती

लघुकथा
स्वीकारोक्ती
एक शहर के गधों ने अपने धोबी एवं बोझा ढुलवाने वाले मालिकों के खिलाफ आपातकालीन बैठक शहर के बाहर वाले मैदान पर बुलाई!संचालन एक बुजुर्ग गधे को सौंपा गया!सबसे पहले गधा यूनियन के सेक्रेटरी ने अपनी बात शुरू की ''आदरणीय गधाधिराज महोदय,सर्वप्रथम मैं आप का ध्यान हम गधों की मार्मिक स्थिति की और केन्द्रित करने की अनुमति चाहता हूँ!महोदय,ये मनुष्य जाति बहुत ही अहसान्फरोश कौम है!हमें निरा मूर्ख समझती है.दिन भर बोझा ढोते हैं तब कहीं भोजन मिलता है ऊपर से हम पर दुनियां भर के लतीफे बनाये जाते हैं.ये दम्भी मनुष्य किसी मूर्ख को मूर्ख न कहकर हमारे नाम से ही संबोधित करता है!हम पर तमाम व्यंग लिखे जाते हैं कॉमेडी नाटक लिखे और खेले जाते हैं.आखिर कब तक हम अपमान का घूंट यूँ ही पीते रहेंगे?बुजुर्गवार का खून खौल गया बोले ""हमें इस मनुष्य नामक प्राणी को सबक सिखाना ही पड़ेगा ....काफी विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि शहर भर के गधे यहाँ से भाग कर (जिसे गधा समूह द्वारा पलायन का नाम दिया गया )पास के जंगल मे चले जायेंगे बाद की रणनीति वहीं पर तय की जायेगी!
जंगल मे पहुंचकर सभी बहुत थक गए थे थोडा रेस्ट किया !एक दूसरे को देखकर खूब हँसते रहे कुछ देर! एक बोला मस्त मज़ा आ गया यार !कैसा हमें मूर्ख कहते थे न सोचते थे कि हम उन से डरते हैं अब मज़ा आएगा!भोजन की समस्या पर विचार करने के बाद सलाह करके सब निकट के खेत मे घुस गए!खेत का मालिक सीधा सदा था निश्चिन्त होकर घर आराम करने गया हुआ था!सभीने खूब छककर हरी हरी घांस खाई! जैसे ही किसान आता दिखा सब भाग खड़े हुए!किसान बड़ा दुखी हुआ!अब तो किसान के लिए ये रोज़ की समस्या ही हो गयी!और गधों की टोली तंदुरुस्त !हारकर उसने अपना खेत बिल्डर को बेच दिया!दुसरे दिन भोजन के समय जब सारे गधे मस्ताते हुए खेत पर गए तो उन्होंने देखा कि वहां तो खेत है ही नहीं!कुछ मनुष्य खड़े हुए हैं और बुल्डोसर चलाया जा रहा है!सबके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी!आसपास भी कोई खेत नहीं था भूख के मारे जान अलग निकली जा रही थी!एक बोला''दिखा दिया न आदमी ने अपना कमीनापन? मै तो पहले ही मना कर रहा था पर तब तो ''यूनिटी''की कसमें भकोसी जा रही थीं!अब मरो भूखे ""वो रुंआसा हो गया बुजुर्गवार ने सांत्वना दी!सब झाड़ के पीछे छिपकर आदमियों की कार्यवाही देखने लगे !तभी उन्होंने जो देखा उस पर खुद ही विशवास नहीं हुआ उन्हें !कुछ पैदल और कुछ गाडी मै जुटे गधे ईंटें और बजरी लादकर चले आ रहे थे!एक बोला''अरे हम तो सब यहाँ आ गए थे ये कहाँ से आ गए?सामान उतारकर उन गधों के सामने हरी घास डाल दी गई जिसे देखकर सबके मुह मै लार आने लगी!एक दुसरे की तरफ देखकर बोले ""साले दगाबाज़ ....स्वाभिमान नाम की तो चीज़ ही नहीं है इनमे!''तभी उन्होंने सुना कार मै बैठे बिल्डर से मजदूर हाथ जोड़कर कह रहा था ''का करें साब पेट्रोल इतेक महंगा हो गया है कि मोटर ला नहीं पाए गधा भे जाने कहाँ चले गए इतेक ही बचे हैं ....वो पूरा वाकया बोल पाता इससे पहले ही सारे के सारे उग्रवादी गधे सर झुकाए एक दुसरे को ठेलते हुए मजदूर के सामने आकार खड़े हो गए !मानो कह रहे हों ''हमें माफ़ कर दीजिये आपसे कोई नहीं जीत सकता हम वही हैं आप जो समझते हैं

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