अव्यक्त वेदनाओं के प्रस्फुटन सा स्वर, सारंगी का!
न जाने क्यूँ ,जब भी सुनती हूँ ',बैचेन होती हूँ !
लगता है ज्यूँ , इतिहास की अंधेरी सुरंग में ,
चली जा रही हूँ मै ,जहाँ रोशनी में कैद हैं ,अँधेरे अब भी!,
कसे तारों पे घूमता कमज़ोर ''गज'जैसे,
जीवन के सच पर,निस्सारता के दोहराव!
तारों पर घुमती कमज़ोर उँगलियों के करतब
,ज्यूँ , सत्य की ढलान से फिसलता वक़्त !..
उमराव जान '''से ''बेगम अख्तर'' तक,
और ''रोशन गलियों के अंधेरों ''..से लेकर,
''शोक घटनाओं ''के पार्श्व संगीत तक का सफ़र
वक़्त के कितने उतार चढाव देखे तुमने ,
फिर,वो दौर भी जो ,
आधुनिकता के नाम पर ''परंपरा''के
खारिज होते जाने का था,यानी की,
निरंतर दोहराव, अवहेलनाओं का !
शेष बची साँसें गिनता अस्तित्व .....!
वादा किया था जिनने मंजिल तक साथ निभाने का
क्या हुए,कहाँ गए वो तेरे साथी ?
जो बगैर तेरे निष्प्राण कहा करते थे?
शायद सबकी मंजिलें थीं अलग ,
सो रस्ते खुद ब खुद लिवा गए उनको !,,तुम नहीं गए!
सपने जो बुने थे तुमने संस्कृति के भविष्य के,
की आज खुद इतिहास बन गए हो!
साक्षी बन देखता रहा वक़्त ये हिदायत देता
चमकती चीज़ यहाँ द्रश्य कही जाती है
की अंधेरों का कोई अस्तित्व नहीं होता!
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चमकती चीज़ यहाँ दृश्य कही जाती है
जवाब देंहटाएंकी अंधेरों का कोई अस्तित्व नहीं होता!
वाह क्या बात कही है।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
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चमकती चीज़ यहाँ द्रश्य कही जाती है
जवाब देंहटाएंकी अंधेरों का कोई अस्तित्व नहीं होता!
बहुत सुन्दर...
आखिरी लाइनें मर्म को छूती हैं!
जवाब देंहटाएंभाव प्रवण।
वंदना बिटिया
जवाब देंहटाएंआशिर्वाद
आपकी कविता पीड़ा में वास्तव में बहुत पीड़ा है
कोनसी पंक्ती पर ना लिखूं
चमकती चीज़ यहाँ द्रश्य कही जाती है
की अंधेरों का कोई अस्तित्व नहीं होता!
पीड़ा लिखती रहें बाटूंगी आपके साथ
धन्यवाद
आपकी गुड्डोदादी चिकागो से
जीवन के सच पर,निस्सारता के दोहराव!
जवाब देंहटाएंतारों पर घुमती कमज़ोर उँगलियों के करतब
,ज्यूँ , सत्य की ढलान से फिसलता वक़्त !..
nihshabd ker diya
फिर,वो दौर भी जो ,
जवाब देंहटाएंआधुनिकता के नाम पर ''परंपरा''के
खारिज होते जाने का था,यानी की,
निरंतर दोहराव, अवहेलनाओं का
वक्त के साथ साथ परम्पराएं भी बदल जाती हैं ....इस पीड़ा को बहुत अच्छे से उकेरा है ...
Bhavsprshee,Bahutahi sundar! Aapki pratibha ko pranam.
जवाब देंहटाएंये मेरे लिए, आपकी अब तक की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द!
ek shreshtha rachana.........yo hi likhte rahiye
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद् आप सभी का प्रोत्साहन के लिए!आपकी शुभकामनायें और प्रेरणा ही मुझे निरंतर लिखने का हौसला देती है!कृपया संपर्क बनायें रखें
जवाब देंहटाएंसाभार
वंदना
बहुत भावमयी प्रस्तुति...बदलते वक़्त और जीवन का सच उजागर करती...
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ बस इसी सोच में हूँ!!!! बहुत गूढ़ बातें हैं. कई बार पढ़ गयी.जितना पढो उतना और नयापन निखरता जाता है.अच्छा लगा आपके तरीके से जिंदगी को और आपको जानना
जवाब देंहटाएंजीवन के सच पर,निस्सारता के दोहराव!
जवाब देंहटाएंतारों पर घुमती कमज़ोर उँगलियों के करतब
,ज्यूँ , सत्य की ढलान से फिसलता वक़्त !..
और ''रोशन गलियों के अंधेरों ''..से लेकर,
''शोक घटनाओं ''के पार्श्व संगीत तक का सफ़र
वक़्त के कितने उतार चढाव देखे तुमने ,
....bahut gahri bhavpurn rachna..aabhar
अंधेरों का कोई अस्तित्व नहीं होता!
जवाब देंहटाएंkitna dard abhivyakt hua hai anayas hi is pankti mein...
sheershak ko saarthak karti rachna!!!
बहुत बहुत धन्यवाद् आप सभीका !
जवाब देंहटाएंकसे तारों पर घूमता कमजोर गज जैसे
जवाब देंहटाएंजीवन के सच पर निस्सारता के दोहराव...
इन दो पंक्तियों के भाव बहुत गहरे हैं...बहुत अच्छी कविता।
जिंदगी के पल पल बदलते सच को उकेरती, दिल को गहराई से छूने वाली खूबसूरत और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
dhanywad dorothy n mahendraji
जवाब देंहटाएंvandana