क्या कहा तुमने?कि
धरती माँ है हम सबकी?
जना है जिसने हमें भी
घोडा, कुत्ता, बिल्ली, कीट पतंगों
वनस्पतियों की तरह?
तुमने लगा दिया माथे पे तिलक उसके
और क़र्ज़ मुक्त हुए तुम
बंधन मुक्त होने तक?
और इसी के एवज में ,
लाल छींटों से रंग दी है तुमने
न जाने कितनी ही बार,
आत्मा तक उसकी,पर
सोख लिया देह ने
वो रोष भी
जब चाहा तुमने छितरा दिए
उसी के हिस्से
उसी के जिस्म पे!
तितर बितर कर,
पर देह का टेका लिए वो
कराहती
हर हिस्से को समेटे
अपने धैर्य में
फिर खड़ी हो गई कांपती
थरथराती लौ-सी!
नहीं जानते तुम शायद कि,
इसी माँ के सीने में
उफनते रहे हैं कितने तूफ़ान
सुलगी हैं कितनी ही नदियाँ
उठी हैं लपटें भीतर ही भीतर!
पर हर बार ही
न जाने क्यूँ,गायब होते रहे ये
भूचाल.ये दावानल,ये अग्नि
और
दिल के बोझ, पहाड़ की शक्ल ले
हिस्सा बनते रहे बुतों की
अंतहीन कतार के !
अपराधबोध की ,
इस मौन स्वीकृति के साथ कि,
''लो तैयार हैं हम
इतिहास में एक पन्ना
और जोड़ने को!''
काश कि,
बुतों का सिलसिला ख़त्म होता
यहीं पर......!
काश कि
ये ज्वालामुखी
यूँ ठंडा हो
तब्दील न हुआ होता
चट्टानों में........!
सुलगता....बहता...दहकता रहता
सदा से सदा तक
तो
चुकाना न पड़ता मोल पीड़ियों को
उनके पत्थर हो जाने का !
बहुत सशक्त कविता ....आज संवेदन हीनता इतनी बढ़ गयी है कि मनुष्य पत्थर ही हो गया है ...
जवाब देंहटाएंकाश कि,
जवाब देंहटाएंबुतों का सिलसिला ख़त्म होता
यहीं पर......!
काश कि
ये ज्वालामुखी
यूँ ठंडा हो
तब्दील न हुआ होता
चट्टानों में........!
ek gahre vicharon ko rakhti rachna
सुलगता....बहता...दहकता रहता
जवाब देंहटाएंसदा से सदा तक
तो
चुकाना न पड़ता मोल पीड़ियों को
उनके पत्थर हो जाने का !
बेहद सशक्त और गहन शब्द
बधाई आपको
आपकी कवितायेँ अब ऊपर उठ रहीं हैं
जवाब देंहटाएंऔर उनकी ये उड़ान हम सबी पाठकों के लिए बहुत सुखद है
"काश कि,
बुतों का सिलसिला ख़त्म होता
यहीं पर......!"
"चुकाना न पड़ता मोल पीड़ियों को
उनके पत्थर हो जाने का !"
बहुत उम्दा !
बढ़िया. कविता में काव्यात्मकता का बोध निरंतर बनाये रखें
जवाब देंहटाएंकाश कि
जवाब देंहटाएंये ज्वालामुखी
यूँ ठंडा हो
तब्दील न हुआ होता
चट्टानों में........!
सुलगता....बहता...दहकता रहता
सदा से सदा तक
तो
चुकाना न पड़ता मोल पीड़ियों को
उनके पत्थर हो जाने का !
बहुत सशक्त सुन्दर कविता। बधाई।
यूं ही लिखती रहें.... बधाई
जवाब देंहटाएंबेहद सशक्त और गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता-- बधाई।
जवाब देंहटाएंबेहद सशक्त और गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंaap sabhee ka hardik dhanyawad
जवाब देंहटाएंvandana
एक ज़ायज ग़ुस्सा…
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