एक अरसे बाद,
देखी दादी,
गाँव में,
गाँव की ही तरह सिकुड़ी!
खँडहर दीवारें,एक दुसरे को
हौसला देती
जीने का!
ज़र्ज़र उघडी ईंटें ,
इतिहास सिसकता है
जिनमें ,सुगन्धित पकवान और
गूंजती किलकारियों का!
ढोलक की थाप और शगुन गीत
अब भी कहीं किसी कोने में
दुबके ,दादी की साँसों का
लिहाज़ करते हैं शायद,!,
झूलती खटिया की
गोद में सिमटी
गठरी दादी
आंगन के उसी नीम की छांव लेटीं जहाँ कभी
खनकती चूड़ियों और महकते गीतों को
गुनगुनाते झूला झुलाया करती थीं,
नौनिहालों को!
सपने बुनतीं आसमान के
आस्मां तक !
ठीक उसी जगह खुले आसमान तले ,
खटिया पर लेटे मेरे बचपन
ने भी सुनी थीं,
दादी के मुहं से
चंदा मामा की लोरी और
सप्तरिशी की कहानी!
एन उसी जगह आज,
खडी है एक
बहुमंजिला ईमारत
दादी और सप्तरिशी के बीच
सीना ताने!
खोजती हैं दादी की
खोजती हैं दादी की
मिचमिचाती ऑंखें
आज भी,
रात के अंधरे में
रौशनी से नहाई
ईमारत के इर्द गिर्द
वो सपने का आंगन
जिसमे बठकर
चरखा काता करती थी वो
खडी है एक
जवाब देंहटाएंबहुमंजिला ईमारत
दादी और सप्तरिशी के बीच
सीना ताने!
आधुनिकता की यह ईमारत शायद दादी से वार्तालाप नहीं करने देती
mann ko chhuti rachna ... rasprabha@gmail.com per bhejiye parichay aur tasweer ke saath vatvriksh ke liye
जवाब देंहटाएंएक अरसे बाद,
जवाब देंहटाएंदेखी दादी,
गाँव में,
गाँव की ही तरह सिकुड़ी!
खँडहर दीवारें,एक दुसरे को
हौसला देती
जीने का!
क्या खूब वर्णन किया है आपने ..आज के सन्दर्भ में बिलकुल प्रासंगिक ,...शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
ढोलक की थाप और शगुन गीत
जवाब देंहटाएंअब भी कहीं किसी कोने में
दुबके ,दादी की साँसों का
लिहाज़ करते हैं शायद,!
मार्मिक अभिव्यक्ति.
पूरा दृश्य आखों के सामने खींच के रख दिया आपने!
दादी का भाव पूर्ण चित्र बनाया है ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक चित्रण्।
जवाब देंहटाएंbahut hee sundar rachna....dil ko chhoo gayee
जवाब देंहटाएंजर्जर इमारतों की दरारें, और वृद्धों की झुर्रियों पर सम्वेदनात्मक पकड़ वाली आपकी ये कविता प्रशंसनीय है.
जवाब देंहटाएंप्रेमपूर्ण बधाई स्वीकार करें.
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.!आपका यही प्रोत्साहन मेरी प्रेरणा है!संपर्क बनाये रखिये
जवाब देंहटाएंवंदना ...
अच्छा लिख रही हैं आप.
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