मुझ जैसे बेसब्र लोग,
बड़ी खुशियों की ,छोटी संभावनाओं को
बर्दाश्त ज़रा कम कर पाते हैं,
लिहाजा, बेवजह सी घटनाओं में
खुश रहने कि वज़हें ,
खोज लेते हैं ,सो....
खुश हो जाती हूँ मैं ....
अपंग भिखारी के हाथ पर सिक्का रखकर,!
कूड़े के ढेर में खाध्य पदार्थ खखोरते,
भुखमरे बच्चों को ,कुछ भोजन अंश मिल जाने पर,!
, एक संघर्ष शील योद्धा की तरह ,
महिला दिवस का पर्व मना,तमाम दोष
पुरुषों के सर मढकर
‘’हिंदी दिवस ‘’पर हिंदी के कसीदे और ‘’वेलेंटाइन डे ‘’पर
प्रेम का इज़हार करके के!
वॉशिंग मशीन के साथ एक साबुन कि बट्टी फ्री पाकर,!
,किसी ‘’पुरूस्कार’’का विरोध और ‘’पुरूस्कार ठुकराने ‘’वाले को
महान घोषित करके ...
,किसी गीत या फिल्म पर अश्लीलता का आरोप मढ़कर
अब तो मत कहो कि खुशियाँ कम हैं जिंदगी में...!
वाह क्या व्यंग साधा है ...ऐसी खुशियाँ कुछ सुकून दे सकें तो फिर गम ही क्या है :):)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग्य्…………शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंbahut dhanywad sangeeta ji
जवाब देंहटाएंshukriya vandanaji:)
जवाब देंहटाएंis tarah ki khushiyon men sharik hone par hamari bhi TRP! badhti hai...bahut hi achchi aur saargarbhit rachna ! badhai evm shubhkamnaen !
जवाब देंहटाएंswagat hai apka chintan me rajneesh ji .protsahan ke liye shukriya
जवाब देंहटाएंकोमल भावों और अह्साओं से युक्त सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंthanks kailash ji :)
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