बूढ़े पिता की देह पर ,लहराती लोटती
वो लहरें,वो बच्चियां समंदर की
मुस्कराता समंदर,उछालता हवा में
कभी,ठेलता किनारों तक उनको !
थामे एक दूसरे का हाथ ,छम छम करतीं
चमकतीं भुरभुरी रेत को भिगोती,छूतीं
और दौड जातीं फिर पेट पर पिता के
उमडती ,अठखेलियाँ करतीं खेलतीं
लौट लौट आतीं फिर फिर
लयबद्ध अंतर्ध्वनियों ने खोज लीं हैं कुछ
संकेत लिपियाँ ,समंदर की
खामोशी को हाशिए पर खिसका
सांझ ढले पस्त हो जातीं लहरें
छिप जातीं फिर गोद में पिता की !
रेत की वो सिलवट, वो आकृतियाँ
पीछे पीछे सरकती ,
खोज़ने आतीं कुछ दूर उनको
ज्यूँ बच्चा माँ की उंगली पकडे
चला जा रहा हो पीछे पीछे
बेहतरीन रचना। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव्।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अंदाज़ कहने का ..सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव..शब्दों का संयोजन बहुत ख़ूबसूरत...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अनुभूति और अभिव्यक्ति लगी.
जवाब देंहटाएंआप सभी का अभिवादन...
जवाब देंहटाएंपिता और बच्चियों के बीच प्यार -दुलार भरे खेल को
जवाब देंहटाएंसमुद्र ,रेत,सलवटें,अठखेलियों के प्रतीकों के माध्यम से
बड़ी सुन्दरता से प्रस्तुत किया गया है रचना में ! बधाई !
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंBeautiful Poem. Have really drawn a great picture of this relationship through words.
जवाब देंहटाएंDelicately woven. Congrats :)
thanks ishan for this beautiful comment:)
जवाब देंहटाएंvandana