2 मार्च 2011

सपने



                    
सपनों की पटकथा ,नींद लिखती है,
और द्रश्य उसे आँख बना देते हैं !
क्षणिक विरासत ,मुंदी हुई आँखों की ,
खुलते ही तितली हो जाती है...!
आँखों से आत्मा तक भीगते ,कुछ आकंठ सपने ,
कुछ चुपचाप लौट जाते , पलकों में उनींदे से !
कुछ लघु-कथाएं सपनों की ,
बिखेर देती हैं ज़ज्बे ....
और कुछ कहानियां बगैर अंत के
डूब जाती हैं ,अंधेरों के साथ..!
अनंत आकाश में अकेले पक्षी से उड़ते
कुछ उदास सपने और,
कुछ समुद्र कि सिलवटों पर जलपंछी से उतराते
निर्दोष ख्वाब, !
चंद ही तो अहसास हैं ,जहाँ हम आज़ाद हैं
उन पर वश नहीं हमारा ,ये अलग बात है !



6 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ समुद्र कि सिलवटों पर जलपंछी से उतराते
    निर्दोष ख्वाब, !
    बहुत ही गहरी कल्पनाशीलता। बहुत सुंदर कविता। साधुवाद।

    प्रमोद ताम्बट

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  2. बहुत सुंदर और सधे बिम्बों से सधी रचना।

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  3. सपने कब हुये अपने। सुन्दर रचना
    बधाई।

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  4. बेहद खूबसूरत बिम्ब प्रयोग के माध्यम से सपनो की हकीकत का सजीव चित्रण कर दिया।

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  5. चंद ही तो अहसास हैं ,जहाँ हम आज़ाद हैं
    उन पर वश नहीं हमारा ,ये अलग बात है !
    wah.bahut achchi baat kahi.

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