जीवन खोजता रहा
अपना अस्तित्व मुझमें ,
और मै वो चिन्ह जो
जिंदा होने का प्रमाण दे सकें उसे ,, ,मेरे !
धडकनें जिंदा होने का सबूत नहीं होतीं
चलन है कि, देह रहित नाम जीते हैं
धरती पर
कभी मंदिरों के पत्थरों में
आस्था भरे ,कभी
बीच चौराहे पर स्मारक के
सूखे फूलों की मालाओं में,या
किताबों के पीले पन्नों में से
उनींदे से झांकते मटमैले शब्दों में
और ज़िन्दगी कहा जाता है जिसे वो,
लयबद्ध ''जिंदा''धडकनों में हांफती
अलयबद्ध ज़िंदगी मजदूर की
या
वो पागल औरत
स्टेशन पर रूखे बिखरे बालों
पपड़ी पड़े ओठ और त्वचा की दरारों से
झाँकतीं ज़िन्दगी /विवशता
जिसकी धडकनों को फ़क़त
ज़िंदगी का लिहाज़ है !
और ज़िंदगी को इंतज़ार
क़ैद से आज़ाद होने का !
अश्रुपूरित संवेदना सहित, एक हृदय को उद्देलित करती रचना के लिए बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुश्वंश जी
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