लड़की ,जैसे गुलाब का फूल
छोटी सी प्यारी सी गुडिया
घर भर कि आंख का तारा
उछलती,कूदती खेलती ,तो घर भर खेलता उसके साथ
जब उदास हो, उदास होती है बगिया,पेड़ फूल पत्ते,चिडियाँ,तितली,कीड़े मकोड़े,सब
खूब बड़ी बगिया,जिसमे खिले किसिम किसिम के फूल
लाल पीले गुलाबी....
किनारों-किनारों लगी पंक्ति बड़े फलदार वृक्षों कि
जैसे बच्चों के सर पर बड़ों कि छाया
नारंगी के पेड़ों कि सलीकेदार सुन्दर पंक्ति
उस पंक्ति के ठीक पीछे एक चौतरफा दीवार
एक पहरेदार ,चौकन्नी/जिस पर दारोमदार था बगीचे कि अस्मिता का
यकीं, तहस नहस न किये जाने का
एक दिन जिद कर बैठी बिटिया
नारंगी खुद अपने हाथ से तोड़ने कि
रो रोकर नदियाँ बहा दीं उसने
नारंगी दूर, नन्हे हाथों कि पहुँच से लुभाती थीं उसको
तब पिता अपने कन्धों पर बिठा
ले गए करीब नारंगी के, और तोड़ लीं बिटिया ने नारंगी
यहाँ से, परिचय हुआ भ्रमों से उसका
उसी दिन पिता ले आये एक छोटा सा झाड नारंगी का
जिसमे लटकी थीं पीली २ नारंगी रसीली ढेर सारी
लड़की खुशी से बौराई ...घर खुश
अब जीतनी चाहो तोडो/धीरे २ और पेड़ आते गए बगीचे में
छोटे पेड़ बड़े फलों से लदे
बेटी दिन रात खेलती उन भ्रमों से
लड़की बड़ी हो रही थी
मन में खिलते फूलों के साथ
लड़की लंबी हो रही थी,
इतनी कि झांक सके दीवार के पार
फिर एक दिन...
....बैठी थी लड़की किसी और बगीचे के भीतर
अपनी छटी हुई जड़ों से
सपनों से ऊँचे दरख्तों और
मज़बूत दीवार को देखती !
अपनी छटी हुई जड़ों से
जवाब देंहटाएंसपनों से ऊँचे दरख्तों और
मज़बूत दीवार को देखती !
लड़कियों के भ्रम मजबूत दीवार से अक्सर टकरा जाते हैं ..और स्वप्न बिखर जाते हैं ... अच्छी प्रस्तुति ...
मन में खिलते फूलों के साथ
लड़की लंबी हो रही थी, इतनी कि झांक सके दीवार के पार
फिर एक दिन...
....बैठी थी लड़की किसी और बगीचे के भीतर
अपनी छटी हुई जड़ों से
सपनों से ऊँचे दरख्तों और
मज़बूत दीवार को देखती
यह पंक्तियाँ दो बार शायद टाइप हो गयी हैं ...या फिर आपने अपनी बात पर जोर देने के लिए दो बार ही लिखी होंगी ...
फिर एक दिन...
जवाब देंहटाएं....बैठी थी लड़की किसी और बगीचे के भीतर
अपनी छटी हुई जड़ों से
सपनों से ऊँचे दरख्तों और
मज़बूत दीवार को देखती !
बहुत संवेदनशील अहसास...बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..
कोमल भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमन को छू गई यह रचना।
जवाब देंहटाएंआप सभी का हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 24 - 05 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
सोचती होगी लड़की कि नारंगी के पेड़ों को ना छू पाने की कसक ज्यादा टीसती थी या किसी और मजबूत दीवारों के बीच सपनों को टकराते देखना !
जवाब देंहटाएंआज ही जन्मदिन की अग्रिम मुबारकबाद दे रही हूँ ..!!
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा ..जब आप मेरे ब्लॉग पर आएँगी तब समझ पाएंगी ....
दूसरी बात मैं भी मई में ही इस संसार से रूबरू हुई थी .एक ही महीने की समानता समझ में आ रही है ...
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी |कोमल भावनाओं से जुडी ...मर्मस्पर्शी ...
बधाई आपको ...!
बहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंछोटे पेड़ बड़े फलों से लदे
बेटी दिन रात खेलती उन भ्रमों से
लड़की बड़ी हो रही थी
मन में खिलते फूलों के साथ
swagat hai apka anupama ji is blog par.apka blog awshay dekhungi ...shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी इस प्रोत्साहन के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद वाणी जी महेंद्र जी
जवाब देंहटाएंकोमल भावनाओं से जुडी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना..................सुंदरता से युक्त प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंshukriya sanjay ,Dr.nidhi ....swagat hai apka 'chintan ' me
जवाब देंहटाएंअमरबेल जहाँ पहुंचती है...वहीँ अपनी जडें जमा लेती है...थोडा समय तो लगता है...
जवाब देंहटाएंमनोविज्ञान की गहरी पकड़ युक्त कविता
जवाब देंहटाएंdhanywad vaanbhattJI ,M verma ji ..is protsahan ke lye
जवाब देंहटाएंमित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंआओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।