बेटा चार साल का था, तब मैं
अच्छी खासी नौकरी में था |
घर चल जाता था पर
तीन पहिये की सायकिल अफ्फोर्ड
नहीं कर पाया, कुछ महगी थी |
वो दस साल का हुआ तो
बड़ी साइकिल की ज़रूरत बताई उसने |
स्कुल सब बच्चे जाते थे सायकिल से
पर उस वक़्त पत्नी के ऑपरेशन में बचत
खत्म हो गई, वो बोला कोई बात नहीं
बस से चला जाऊंगा |
फिर कॉलेज में महगाई ने
बढ़ी हुई तनखाह को
पीछे धकेल दिया और
बाईक नहीं ले पाया, बेटे ने कहा
रहने दीजिए पापा चला जाऊंगा
मेट्रो से और वो चला जाता था |
मै खुश, कि बेटा कितना समझदार है
समझता है घर की परिस्थिति और
आदर्शवादिता के मायने | बेटे की
शादी हो गई, दहेज में मिली कार में
बैठकर, पत्नी से बोला
अच्छा हुआ जो तुम मिल गईं नहीं तो
ये इच्छा भी मन में ही रह जाती |
अति मार्मिक. कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह गए.
जवाब देंहटाएंबधाई. ऐसे ही लिखते रहें :)
बहुत मर्मस्पर्शी रचना...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंdhnywad ishan ,kailash ji
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
चलिए कार की इच्छा तो पूरी हुई ...अच्छी विचारणीय रचना
जवाब देंहटाएंबहुत २ आभारी हूँ वंदना जी आपकी ,कि आपने इस कविता को प्रतिष्ठित ''चर्चा मंच''के लिए चुना !
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत धन्यवाद संगीता जी आपका इस प्रोत्साहन के लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक रचना ....दिल को छू गयी
जवाब देंहटाएं