स्मृतियों का कोई सिरा नहीं होता
और न ही सपनों का कोई खूंटा
जीवन कि धुंध कि तरह
सुख में सुख , और दुःख में दुःख का भ्रम ओढ़े
उग आते हैं बस
बस यूँ ही
,जैसे भोर आ जाती है
बस यूँ ही ,जैसे बारिश धुप रात .और जिंदगी ..
फिर भी नीद क्यूँ तलाशती रहती है अँधेरे ?
क्यूँ फंसे रह जाते हैं कुछ धागे
वक़्त कि गिरह में?
ऊन के गोले सी
लुद्कती रहती हैं बूढी उम्मीदें
आँखों में अँधेरा भर
हो जाता रंगों का पटाक्षेप जब ..
खुल जाते ऊन के गोले
इस ध्रुव से उस ध्रुव तक
सड़क की शक्ल में
बस यूँ ही ...
.....
और ज़िंदगी की यात्रा हो जाति है पूरी ..अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंफिर भी नीद क्यूँ तलाशती रहती है अँधेरे ?
जवाब देंहटाएंक्यूँ फंसे रह जाते हैं कुछ धागे
वक़्त कि गिरह में?
गहन ..सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
यही है ज़िन्दगी….…इस ध्रुव से उस ध्रुव तक्।
जवाब देंहटाएंआपने एकदम सटीक सही बात कही है,
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