3 जुलाई 2011

यथार्थवादी कहानी के प्रणेता मोपासा - भाग 1


सुप्रसिद्ध फ़्रांसिसी कथाकार मोपासा की पुन्य तिथि पर श्रद्धांजली स्वरूप ये लेख :


किसी कहानी का कहानी होते हुए भी इस क़दर जीवंत होना कि वो पाठक को द्रश्य का एक हिस्सेदार बना ले यही किसी कहानी की सफलता है और यही कुशलता कुछ चुने हुए कथाकारों की कृतियों को असंख्यों की भीड़ से अलग कर एक शिखर तक पहुंचा देती है! हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक स्वयं प्रकाश कहते हैं’’कुछ ही किताबें ऐसी होती हैं ,जो आपको कुछ बताती .सुनाती कहती नहीं सीधे एक द्रश्य और एक काल के सामने ले जाकर खडा कर देती हैं !


उनीसवीं सदी के अंतिम दशकों में यथार्थवादी कहानी को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने का श्रेय निस्संदेह जिन दो लेखकों को जाता है वो हैं मोपासा और चेखव !अराजकता ,निर्ममता के समक्ष निरुपायता की निराशा ,निर्धनों की विवशताएं,दासता की त्रासदी,सामाजिक राजनैतिक विसंगति ,नोर्मंडी किसानों के जीवन का अत्यंत जीवंत एवं वस्तुपरक वर्णन मोपासा के रचना संसार की विविधता एवं विशेषता रही !
सर्वश्रेष्ठ फ्रांसीसी कथाकार (1850-1893)आनरे रेना आल्बेर गे द मोपांसा का ज़न्म 5 अगस्त 1950 को फ़्रांस के शैतो द मिरोमेस्निल में एक नोर्मन परिवार में हुआ था !मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में माता पिता में सम्बन्ध विच्छेद हो गया,और मोपासा अपने छोटे भाई और माँ जो सुसंस्कृत,साहित्यिक रूचि वाली सभ्रांत महिला थीं के साथ रहने लगे !यद्यपि माता की रुचियों और संस्कार का उन पर गहरा प्रभाव था बावजूद इसके माता पिता के अलगाव का उनके बाल मन पर बुरा असर हुआ !कहा जा सकता है कि इस दुर्दांत त्रासदी ने उनकी अधूरी और बिखरी जिंदगी को एक सर्जनात्मक भटकाव की परिणिति में मोड दिया था,पर नियति की विडम्बना का यही अंत नहीं था ,उन्हें युवावस्था में एक लाइलाज बीमारी ने जकड लिया ,जो उस युग में यूरोप की सर्वाधिक भयावह बीमारी मानी जाती थी !दरअसल मोपांसा को यह रोग वंशानुगत रूप से मिला था !मोपांसा अपने आयु की अल्पता जानते थे ,अतः एक ओर तो उन्होंने संभवतः इसी नैराश्यपूर्ण सत्य से ग्रसित हो दुराचारी और मौज मस्ती भरा जीवन जीने की ओर रुख कर लिया ,वहीं दूसरा पक्ष यह था ,कि जीवन की सीमित परिधि की इसी अनुभूति ने उन्हें सर्जनात्मकता और तीव्रता भी प्रदान की !यही वजह थी कि मात्र तैंतालीस वर्ष की आयु अर्थात सिर्फ बारह वर्षों के साहित्यिक जीवन में उन्होंने तीन सौ से अधिक कहानियां और छः उपन्यास लिख डाले !ये केवल संख्यात्मक द्रष्टि से चौकाने वाला करिश्मा नहीं था बल्कि उससे भी अधिक आश्चर्यजनक बात ये थी कि उनकी अधिकांश रचनाएं यथार्थ वादी कहानी की उत्कृष्ट श्रेणी में गिनी गईं !गौरतलब है कि बाल्जाक के बाद सबसे लोकप्रिय लेखक मोपांसा ही थे !लोकप्रियता में वे कई मूर्धन्य और वरिष्ठ कथाकारों को पीछे छोड़ चुके थे ! उनके समकालीन महान लेखक उनकी सशक्त शानदार रचनाओं के स्वयं भी कायल रहे जिनमे तुर्गनेव,टोलास्तोय,गोर्की आदि शामिल हैं !दरअसल साहित्य या कोई रचना प्रायः लेखक के अनुभव और भोगे हुए यथार्थ की गहराइयों से निकली अनुभूतियाँ ही होती हैं !

मोपांसा की कहानियों में वैविध्य पूर्ण विस्तार है !अमूमन किसी भी कहानी का केन्द बिंदु या तो कोई पात्र हो सकता है ,कोई विशेष स्थिति/घटना ,या कोई विशिष्ट स्थान जिनके आसपास कहानी बुनी जाती है , खुद को बयाँ करती है! मोपांसा की कहानी/उपन्यासों में इसी केन्द्रीय धुरी की विविधता बहुलता में देखने को मिलती है !उनकी कहानियों को पढकर जहां एक ओर व्यक्तिगत,पारिवारिक,तथा सामाजिक स्थितियों व संबंधों की तस्वीर खिंचती है ,आर्थिक –राजनैतिक समस्याएं उजागर होती हैं,वहीं हमें मानव चरित्र को गहराई से जानने और उसके मनोविज्ञान को समझने का अवसर भी मिलता है!वो एक अराजकता और आतंक का दौर था !प्रुशियाई लोग जिन्होंने पेरिस को घेर लिया था बहुत ताकतवर थे और फ़्रांस को तबाह करने ,लूटमार और आतंक फैलाना जिनका मकसद था !उनकी ज्यादातर कहानियां इसी दौर में लिखी गई हैं !हालाकि उनकी रचनाओं में सभी महानता की कोटि में आती हों ये कहना तर्कसंगत नहीं होगा और शायद ये किसी भी लेखक के लिए संभव भी नहीं ,तब जबकि रचनाएँ इतनी तीव्रता और समय की तुलना में इतनी अधिक संख्या में लिखी गई हों ! पर उनकी सशक्त रचनाओं की गिनती और ऊँचाई ,उनकी कामचलाऊ रचनाओं को नज़रंदाज़ करने के लिए पर्याप्त है !

1880 में लिखी गई कहानी ‘’चर्बी की गुडिया’’जिसे तब ही नहीं आज भी लेखक/आलोचक उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानी मानते हैं !यह कहानी ज़र्मनी के कब्ज़े वाले शहर से बचने के लिए एक घोडा गाड़ी में यात्रा कर रही एक वैश्या की है !इस घोडा गाड़ी में विभिन्न वर्गों ,व्यवसाय ,स्वभाव, रहन सहन,व विचारधाराओं के कुछ पुरुष व महिलायें मौजूद हैं,जिनमे दो ननें भी शामिल हैं !सभी फ़्रांसिसी यात्री जो घोडा गाड़ी में विवशतावश निस्संदेह एक भय को ओढ़े हुए एक साथ यात्रा कर रहे थे वो इस वैश्या को देखकर नाक भौं सिकोड़ते हैं ,उससे घृणा और तिरस्कार पूर्ण व्यवहार करते हैं !जब घोडा गाड़ी की धीमी गति और समय पर गंतव्य तक ना पहुँच पाने की कुछ दिक्कतों के चलते सभी यात्रियों का भूख के मारे बुरा हाल हो जाता है ,और खाने की कोई सामग्री उपलब्ध नहीं होती तब वही वैश्या जो सभी यात्रियों के लिए भोजन व्यवस्था करके आई थी सभी को भोजन उपलब्ध कराती है !पहले तो अभिजात्य कुलीन महिलायें उसे हिकारत से देखती हैं, इनकार करती हैं फिर असहनीय भूख के कारन भोजन स्वीकार कर लेती हैं !वो अपने प्रति बनाये गए उस माहौल को अत्यंत सहजता और धैर्य से ग्रहण करती है !तभी एक घटना घटती है!एक ज़र्मन अफसर उनकी घोडा गाड़ी रोक लेता है और कहता है कि गाड़ी को तब तक आगे नहीं जाने दिया जायेगा जब तक कि वो एलिजाबेथ रूसो (वैश्या)को हासिल नहीं कर लेता !वैश्या ज़र्मनों से बेहद नफरत करती थी और अपने देश के प्रति उसमे सम्मान और देश भक्ति की भावना थी !वो उस ज़र्मन अफसर से स्पष्ट मना कर देती है !सहयात्री जो अब तक उस वैश्या से बुरा व्यवहार कर रहे थे अब उसको तरह तरह से मनाते हैं ,स्त्रियां अचानक उसकी फ़िक्र और अच्छा व्यवहार करने लगती है तथा असहायता,बेचारगी और कर्तव्य परायणता का वास्ता देकर लगभग षड्यंत्र के तहत उसको मना लिया जाता है और मजबूर कर दिया जाता है !लेकिन जान बचते ही अगली यात्रा में सब सहयात्री उससे फिर से नफरत और तिरस्कार पूर्ण व्यवहार करने लगते हैं,उसका अपमान करते हैं,स्त्रियों में वही तिरस्कार,अपमान ईर्षा पुनः जाग्रत हो जाते हैं !इस कहानी में प्रिशियाई आतंक ,सामाजिक वर्गों की भावनात्मक-संवेगात्मक रिक्तता ,संवेदन हीनता और स्वार्थपरकता का चित्रण किया गया है!

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