23 जून 2011

यात्रा


हजारों फीट ऊपर ज़मी से उड़ रही हूँ मै
बादलो से घिरी , बादलों को चीरते !
दूर दूर तक सिर्फ बादल, सिलेटी सफेद और लाल ...
क्षितिज में चल रही हैं होली लाल पीले चमकीले रंगों की
और घिरी हूँ मै कुछ सफेद बर्फ के टुकड़ों  से
एक अद्भुत  अनुभूति है यह 
चेहरों की ऊब और रिश्तों से मुक्ति की
उन अहसासों से जो धरती के किसी कोने में
मौका नहीं छोड़ते लिपट जाने का
अब धुंधला रहे हैं द्रश्य  
कितना साफ़ कितना स्पष्ट दीखता है यहाँ से  
सूरज का अस्त होना ,
और धीरे धीरे प्रवेश करना 
एक शून्य में ,
 जैसे जाती है उम्र, ख़ारिज होती जिंदगी को लिए
धीरे धीरे किसी तिलिस्म के भीतर  
दिपदिपा रहे हैं शहर कुछ लाल पीली बत्तियों में  
अपनी सीमाओं और उनके कारोबारों से निस्पृह
इतना ही  तो होता है जिंदगी और मौत का अर्थ 
कि हर  सुबह का  पहुँच जाना किसी गंतव्य तक
फिर बन जाने को किसी भीड़ का हिस्सा   
या फिर , रह जाना इन्हीं बादलों में कहीं ‘
हो जाते हुए बादल का एक टुकड़ा ......

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर है बहन जी ....एक परिपूर्ण अभिव्यक्ति
    मेरे ब्लॉग पर भी पधारे

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  2. सोच हावी है दिल की अभिव्यक्ति पर ..अच्छी रचना

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  3. बेहद गहन और सशक्त अभिव्यक्ति……………सम्पूर्ण ज़ीवन का अवलोकन है।

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  4. मैं भी शामिल हूँ, इस यात्रा में।

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