23 जून 2010

माँ

अवतरण के बाद अपनी नन्ही आँखें खोल
जब देखता है माँ को पहली बार और
अपने छोटे छोटे सुकोमल हाथ पैरों से
ठेलता है माँ के पेट को
रोता है उससे चिपक तो
उस वक़्त दुनियां की सबसे किस्मत वाली
लगता है उसे, कि वो है
तमाम सुख सुविधाओं के बीच पाले या फिर
गुदड़ी की शोभा हो,वो तो
समझता है माँ को ही अपना
भगवान्,भूखा तो माँ प्यासा तो माँ
खुश तो माँ
दरद तो भी वही
माँ कहे आंटी को गाना सुनाओ
तो वो शुरू
आल इस वेळ पर नाचो
तो जैसे भर जाती है उसमे चाभी
गर्व से सातवें आसमान पर होती वो उसे
उंगली पकड़ ले जाती है
स्कूल जब डिब्बा बोतल पेन पेन्सिल के
साथ मे अपने तमाम आशीर्वाद और शुभकामनायें भी
सहेजकर रख देती है बस्ते मे
माथे के सिरे पर बैठा देती है
एक काजल के टीके का पहरेदार
बुरी नज़र को डपटने के लिए
स्कूल से छोड़कर घर आते वक़्त
सुखद भविष्य की निश्चिन्तता के साथ
सपनों की भीड़ से घिरी अकेली
माथे का पसीना पोंछती
मुस्कुराती'लौटती है घर जहाँ प्रतीक्षा कर रही होती
तमाम जिम्मेदारियां घर भर की
कमर मे ठुन्सके पल्लू जुट जाती
रोज़ की किल किल मे
देर से नाश्ता देने की पति की फटकार,हो कि
सास के सुबह की तफरी के बहाने पर
उलाहनों पगे भाषण सब मंजूर है उसे
लाडले की कीमत पर
जवान होते जाते सपने उसके भी
बेटे के साथ
पर वही बेटा जब माँ की किसी समझाइश पर
कहता झिड़ककर कि ''माँ तुम नहीं समझतीं
कुछ ,ये नया जमाना है या फिर
अपने बेटे की बहु जिसका चेहरा उसकी आँखों मे
तबसे पनप रहा है जब वो
पैदा हुआ था ,अपने पति को
माँ के आँचल से जुदा कर ले जाती है बेटे को
उससे बहुत दूर और बेटा कहता कि
ऐसा ही होता है माँ ये तो समय का तकाजा है
तो वो समझ नहीं पाती इसका अर्थ कि
क्या नए समय के साथ माँ का दिल और सपने भी बदल दिए जाने चाहिए?
काश ज़माने के साथ साथ माँ का दिल भी बदलता जाता
तो सपनों को ध्वस्त होने की त्रासदी तो नहीं झेलनी पड़ती?
अब वो खाली है बिलकुल न स्कूल का डिब्बे का झंझट
न बस के लिए भागना न घरवालों की उलाहना
बस एक खालीपन सा बैठ गया है मन के किसी कोने में दुपककर
जिसे याद से भरने का उपक्रम करती रहती है दिन भर
झरते रहते हैं आँखों से
आशीर्वाद के बोल और
भीगती रहता है आँचल आंसुओं से

4 टिप्‍पणियां:

  1. शाश्वतृ सवाल!!
    क्या नए समय के साथ माँ का दिल और सपने भी बदल दिए जाने चाहिए?
    संवेदनाओं की पुटलिया खोलती जा रही हो आप। साधुवाद।

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in
    http://vyangyalok.blogspot.com
    व्यंग्य और व्यंग्यलोक

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  2. बेहतरीन. कितनी ही चीज़ों का तीखा और मीठा एहसास एक ही बार में करा गए ये शब्द. हर माँ का एहसास इन्हीं कुछ पंक्तियों में समाहित दिखाई पड़ता है.

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  3. बहुत ही भावपूर्ण और सुंदरता से अपने माँ को शब्दो मे उकेरा है...

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  4. बहुत ही भावपूर्ण और सुंदरता से अपने माँ को शब्दो मे उकेरा है...

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