15 नवंबर 2010

प्रायश्चित


बचपन में माँ   ने 
कुछ पौधे रौंप दिए थे 
मन की बगिया में मेरी!
सींचा था खाद पानी से उन्हें!
संतोष''और सहन शीलता'' की जड़ को
खूब गहरे दबा   दिया था !और  ,
 इसी बागवानी के रख रखाव के जतन में  ,
गीता प्रेस गोरखपुर और अमर चित्रकथा सी 
तमाम ज्ञानवर्धक पुस्तकों  से लेकर 
 मसालों  की ताज़ा गंध से गंधाते
माँ  के पल्लू से लिपट के 
शिक्षाप्रद कहानियां सुनने तक बचपन ,यानि 
उम्र का एक हिस्सा सौंप दिया गया  था, मेरी  !
माँ  चाहती थीं ,उन  तमाम 
प्राप्य और परंपरागत संसकारों  को
मुझमे उंडेल देना जो उनके पुरखे
सौंप गए थे उन्हें!
ताकि
बरी  हो सकें वो
एक ''बेटी''पैदा करने के 
अपराध बोध से !
और खूब आग्रह के साथ कहा था उनने 
की सूखने मत देना इन्हें ! 
जड़ को संभालोगी तो
बाकी चीजें  खुद ब खुद संभल जायेंगी!
माँ, बहुत प्रायश्चित के साथ कह रही हूँ की 
तुम्हारी इस धरोहर को मैं सहेज न  सकी   ''
क्यूंकि 
न जाने कब  और कैसे  तुम्हारे बोए पौधों पर,
अतृप्त इच्छाओं और विवशताओं के कीटों ने 
 कर दिया आक्रमण ,ले लिया अपने चपेट में!
की संक्रमित हो दूषित हो गई 
जड़ें तक इसकी 
और अब तो वो पौधे 
तब्दील हो चुके हैं एक 
घने जंगल में  ,इतना घना की 
रोशनी की किरण तक न पहुँच सके!
सुना है की आस्मां की चादर में कहीं हो गया है
एक छेद ,जिसमे से गर्मी  का ताप
सीधे  पहुच रहा है जंगलों तक 
रोज़ देखती हूँ सपने में
आग का भीषण तांडव
उस बगिया में
जो बोई  थी कभी तुमने माँ!





6 टिप्‍पणियां:

  1. माँ पर बहुत सुन्दर भाव से लिखी गई बहुत संवेदनशील रचना ... आभार

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  2. न जाने कब और कैसे तुम्हारे बोए पौधों पर,
    अतृप्त इच्छाओं और विवशताओं के कीटों ने
    कर दिया आक्रमण ,ले लिया अपने चपेट में!
    की संक्रमित हो दूषित हो गई
    जड़ें तक इसकी
    भावों का बेहद संवेदनशील और मार्मिक चित्रण……………उम्दा प्रस्तुति।

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  3. और अब तो वो पौधे
    तब्दील हो चुके हैं एक
    घने जंगल में
    और इस घने जंगल में शायद धूप की रोशनी भी हो
    बहुत गहरी अभिव्यक्ति

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  4. एक बेटी भी हूँ,एक माँ भी और इनसे बहुत अधिक एक मनुष्य हूँ और मुझे लगता है कि माँ ने जो बीज बेटी के मन में बोये थे,उसकी फसल मानवमात्र के मन में होनी चाहिए..सहनशीलता सहिष्णुता और धर्य ही जीवन को सुन्दर बनाते हैं...

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  5. "की सूखने मत देना इन्हें !
    जड़ को संभालोगी तो
    बाकी चीजें खुद ब खुद संभल जायेंगी!"

    गहन और संवेदनशील शब्द.
    बधाई आपको.

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