14 जुलाई 2011

कतरनें......

टुकड़ों में पढ़ने के बाद अब विस्तार से आजकल गोर्की को पढ़ रही हूँ ,कुछ दिन पहले मोपासा को पढ़ा !दरअसल इन लेखकों को पढ़ना एक अतीत का दोहराव है,एक इतिहास जो चलचित्र की तरह हमारी आँखों के सामने घूमता जाता है !कितनी विकट स्थितियों में जीते थे लोग,और उन्ही दुर्दम स्थितियों के बीच किस तरह प्रेम,खुशियों,सेलिब्रेशन के बहाने खोज लिय करते थे ...अद्भुत है ये अनुभव !गोर्की ने तीन उपन्यास लिखे थे जिनके नायक वो स्वयं थे !क्यूँ कि इनकी सारी घटनाएँ उन्हीं के जीवन से सम्बंधित हैं,उन्हीं के इर्द गिर्द घूमती हैं !गोर्की के उपन्यास का कलात्मक सौंदर्य इसी बात में निहित है कि वो बगैर किसी भूमिका के पाठक के सामने एक द्रश्य प्रस्तुत कर देता है !उनका एक पात्र कहता है’’इन पुस्तकों ने मेरे ह्रदय को निखारा ,और उन खरोंचों और दाग धब्बों को साफ़ कर दिया,जो कटु और मैली कुचैली वास्तविकता से रगड खाने के कारन मेरे ह्रदय पर पड़ गए थे !....एक जगह वो लिखते हैं ‘’और यही किताबें पढ़ने वालों ने तो रेल की पटरियां उड़ाई थीं ?....संभवतः किताबों की भूमिका और विश्वसनीयता को वो किसी व्यक्ति से बेहतर दर्ज़ा देते हैं !गौर तलब है कि लेनिन के अंतिम दिनों में गोर्की की पुस्तक’’मेरे विश्वविद्यालय’’उनकी एक अत्यधिक प्रिय पुस्तक थी !

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