16 जुलाई 2011

नटिनी



ज़न्म और मृत्यु के दो बांसों के मध्य
जीवन की रस्सी पर ,चल रही है औरत
ज़मीन और आसमान दौनों से परित्यक्त
साधते हुए, लटपटाते कदमों को !
संतुलन, सांसों की शर्त पर ढोते हुए
 धैर्य की चहारदीवारी के भीतर !
जैसे-जैसे डोलती रस्सी की सामर्थ्य
उसके दहलते दिल के समान्तर

हर लडखडाहट के साथ बजती हैं तालियाँ
उत्साही तमाशबीनों की ,
जेबों में भरे इतिहास की चिल्लर   
 खनखनाती है पसरी चादर पर
मज्मेबाज़ मुस्कुराता है ,
समेटता विजेता -सा उन्हें ....
औरत एक बार फिर मरती है
फिर जिंदा होने की कोशिश में

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