दुनियां के तमाम द्रश्य्मान फरेबों को खारिज कर मन उस अज्ञात आत्मीयता की तलाश में रहता है जो निर्मल है ओस की तरह ,निर्दोष हवाओं की तरह,निश्छल पक्षी की चहचाहट और निस्पृह मौसम की तरह !प्रतीक्षा, हर पल हर धडकन....! अहसास स्पर्श है आत्मा का, द्रश्य नहीं ... वाष्प है नदी नहीं , , धुआ है आग नहीं..... शक्ति है देह नहीं .!अकेलेपन की कैसी निर्ममता है ये ? अपने आसपास मौन एकांत की दीवारें खड़ी कर लेना और उसमे कैद हो जाना ,खुले आकाश की तलाश में ....!
गहन चिंतन ...
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी बात कही है आपने.
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कल 13/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
धन्यवाद संगीता जी ,यशवंत जी मेरे विचार को शेयर करने के लिए
जवाब देंहटाएंअपने आसपास मौन एकांत की दीवारें खड़ी कर लेना और उसमे कैद हो जाना ,खुले आकाश की तलाश में ....!
जवाब देंहटाएंअकेलापन बहुत निर्मम होता है...सच कहा आपने...और तकलीफदेह भी ...
अच्छा चित्रण किया है बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ही बढि़या ...
जवाब देंहटाएंसुंदर विचार!
जवाब देंहटाएंgahan chintan
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