अजीब है ये कि किसी
रात का जाना रात की तरह हर दिन ,
और फिर ....
सुबह का होना सुबह की तरह / होकर
हडबडाकर नीद से उठ बैठना
आँखों की तरल जिजीवषा में
इन्द्रधनुष को भरना ....
केलेंडर में तारिख बदलना .....
घड़ी की सिलाइयों पर
दिन को बुनना
और पहन लेना
अजीब है ... ...
थकी हुई शाम का ,घर लौटना
शेष उर्जा और बचे हौसलों की
आवाजों के साये को
नीद के आसपास बिखेर देना
ढूँढना एक द्वार
वहीं कहीं ,
ढही ऊष्मा की छड़ी को ,किसी
चरमराते किवाड़ के पल्ले पे लटका देने को
और फिर उम्मीदों के बिस्तर पे
अतृप्त नींद को सुला
लॉन में आकर ...
धूल भरे आकाश में चाँद ढूँढना
और अंततः....
कल की अधूरी इच्छाओं को ओढकर
लालटेन की बत्ती कम कर
घडी के सुइयों को करने देना मनमानी
एक बार फिर.....
और सो जाना
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंsunder abhivyakti.
जवाब देंहटाएंthanks vandanaji ....anamika ji
जवाब देंहटाएंयूँ ही चलता रहता है चक्र ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं