वो ऐसी ही एक
खामोश शाम थी,जब,
लौट रहे थे पक्षी,घोंसलों तक,
पशु,चारागाहों
से,
रौनक वापिस लौट रही थी
पेड़ों, और पत्तों की,
घर लौटते पक्षियों के
कलरव से
जल गईं थीं बत्तियां घरों की,
सूरज की रौशनी की परियां
बतियाती,खिलखिलाती
वापस घर लौटने लगीं थीं,
सभी लौट रहे थे
अपने अपने ठिकानों पर
नहीं थे तो
सिर्फ तुम!
हाँ मगर,तुम्हारी जगह,
तुम्हारी याद लौट आई थी
उस दिन भी बैठ गई थी
बगल में मेरे
देहरी पर ही,
और
बतियाती रही थी देर तक
और फिर,हौले से
मेरा हाथ थाम,
लिवा लाइ थी
कमरे तक
थपकियाँ दे सुला दिया था
उसने मुझे,
और फिर
जुडती गईं इसमें
सिलसिलेवार कड़ियाँ
बस वही
मै .....देहरी......और याद.....
शुक्रिया तुम्हे .........!
बहुत अच्छी कविता है। सुन्दर अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंनवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जय माता जी की!
बेहतरीन रचना ... सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंयादों को बहुत ही खूबसूरती से समेटा है……………बेहद प्रवाहमयी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकिसी के चले जाने के बाद अन्दर उठते गिरते भावो को शब्दों में पिरोना आसान नहीं होता.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत और भावमय शब्द.
आपके ब्लॉग पर जब भी आती हूँ, दिल को एक सुकून सा मिलता है.....
जवाब देंहटाएंहर कविता में कहीं न कहीं अपनी परछाईं देख पाती हूँ....
तहे दिल से शुक्रिया ....
मै .....देहरी......और याद.....
जवाब देंहटाएंये ३ शब्द कितना कुछ कह गए अंत में.
मर्मस्पर्शी.
ज़ेबा
जवाब देंहटाएंमेरी कविता आपको सुकून देती है,इससे बढ़कर और कुछ नहीं,.........सच ,किसी भी माध्यम से सही हम किसी के दिल का ज़रा सा सुकून भी बन पायें ये हमारी खुशकिस्मती ही है
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं ,शुक्रिया
vandana
धन्यवाद् वंदनाजी
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!आपको अपने ब्लॉग पर देखकर हमेशा की तरह अच्छा लगा
वंदना
Hi sanjay,Mr Verma &udan tashtari
जवाब देंहटाएंapko kavita achchi lagi,,bahut bahut dhanyawad.
apke comments mujhe nissandeh protsahit karte hain
thanks again
Hi Ishan
जवाब देंहटाएंthanks for a nice comment,
vandana
और फिर
जवाब देंहटाएंजुडती गईं इसमें
सिलसिलेवार कड़ियाँ
बस वही
मै .....देहरी......और याद.....
बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम, बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
www.srijangatha.com हेतु आपकी रचनायें अपेक्षित हैं ।
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