जिंदगी से अब कोई
शिकवा नहीं हैं
सिवा इस दर्द के कि
वक़्त का बेवक्त आना
और गुज़र जाना
किसी तूफान सा और
कुछ पलों तक
यादों की कश्ती का
फिर से
डगमगाना
ज़िन्दगी के
अनखुले प्रष्टों को
जो मै देख पाती
बहुत मुमकिन था
कि तब,
ख्वाबों को कुछ
बेहतर सजाती
अब तो सच और
ख्वाब में अंतर नहीं
कुछ भी रहा है !
नींद में सच देखती और,
दिन में सपने पालती हूँ
बस सुकून देने खुद को
सैंकड़ों करती जतन हूँ
वक़्त की हर चाल वर्ना,
किंचित सही
पहचानती हूँ!
बहुत सुन्दर लिखा है|
जवाब देंहटाएंbahot hi sundar kavita hai! .aur bahot gehri bhi..
जवाब देंहटाएंनींद में सच देखती और,
जवाब देंहटाएंदिन में सपने पालती हूँ
वाह , बहुत खूब
धन्यवाद् संगीता जी !मुझे ख़ुशी है कि मेरी कवितायेँ आप पढ़ रही हैं.कृपया कुछ कमियां हो तो अवश्य बताइए
जवाब देंहटाएंवंदना
thanks patali The village
जवाब देंहटाएंvandana
thanks Aroh....
जवाब देंहटाएंविदेश में रहकर हिंदी कविता के प्रति आपकी समझ और सराहना को मेरा साधुवाद स्वीकारिये
वंदना
सच तो लिखा है एक दम ...यही तो यथार्थ अब हमारे बीच रह गया है.सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंवक़्त का बेवक़्त आना और गुजर जाना...
जवाब देंहटाएंवाह,जवाब नहीं इस पंक्ति का, क्या खूब कही है...अत्यंत प्रभावशाली कविता..बधाई
thanks anamikaji and Mr verma.apke comment mere liye bahut ahmiyat rakhte hain.apko achchi lagi kavita ...i m very happy for that
जवाब देंहटाएंthanks
vandana
बेहद खूबसूरत. बार बार पढ़ के भी मन नहीं भरता :)
जवाब देंहटाएंआशा है ऐसी ही कवितायें आगे पढने को मिलती रहेंगी.
thank you Ishan.
जवाब देंहटाएंvandana