25 अक्तूबर 2010

अधूरे सपनों का सच

ये  पतझड़ का मौसम था ....
चाहकर भी देह पेड़ की
नहीं रोक सकी ये .विडम्बना 
और एक एक कर उसके,
नितांत अपने,
पल पल के साथी 
उसके ,सुख दुःख के गवाह
हर पत्ता फूल 
और बीमार
कमज़ोर शाखाएँ 
तीखी गर्म हवाओं 
की अग्नि में झुलस 
बिखरते चले गए 
तिनकों की तरह,
धरती  पर,
वही धरती, 
जो माँ थी उनकी 
जिसकी कोख से पैदा
 हुए  थे वे  सब !
कैसे सहा होगा माँ ने
अपनी ही सुंदर रचना को
इस क़दर 
ज़र्ज़र होते,
इस तरह टूटते बिखरते
पर ,सच था ये !
बस यही त्रासदी 
 सूनी देह पेड़ की
याद करती है,किसी 
बुजुर्गवार के खंडित
संस्मरणों की शेष 
कतरनों  की तरह,
उनका पैदा होना,
और उसी तरह बिखर  जाना,
और सुनाती है
हवाओं,और उदास 
आसमान को,
वो दृश्य 
 जब
उगी थीं नीरस देह पे उसकी
सुकोमल पत्तियां,.शाखाएं,
और फिर कलियाँ,
जो फूल बनकर इतराया करती थीं
और वह उसे खिलखिलाते
मुस्कुराता,मंत्रमुग्ध हो 
इठलाते देखा करता था
पर ,
न जाने कैसे 
और कहाँ गए वो सब
आहिस्ता आहिस्ता ,और
शेष  रह गया पेड़ ठूठ सा
झुर्राई सूखी  देह लिए
लेकिन....
फिर एक दिन
मन-जीवन के सन्नाटे को 
चीरते ,हरहराते पड़े 
अमृत के छींटे  कुछ
मुस्कुराते आसमान  से,
फिर उगीं पत्तियां...
शाखें ...कली...फूल
हरिया गई देह फिर से
रौनक भर गई 
आसपास में,
फिर खिलखिलाहटें 
 बिखर  गई 
बगिया मे,
आबाद हो गया चमन ,
फिर से,
नए फूलों की ताजगी भरी 
खुशबूओं से,
तितलियों और 
भौरों से !
भूल गया पेड़
वो बिखरे पत्ते फूल,तिनके 
नाचने लगा
उन्हीं के साथ ,,
और तभी ये 
अहसास भी हुआ उसे 
कि निराशा के घनघोर 
अंधेरों के बीच कहीं,
रौशनी की लकीर 
का अस्तित्व भी
हुआ करता है,
जिसका वुजूद होता है
सिर्फ 
अँधेरे के किसी कोने मे
और ये भी कि
''बिखरना''
इस तरह 
शुरुआत भी हो सकती है
किसी नए सपने की 
या फिर सपनों भरी
जिंदगी की !

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. ''बिखरना''
    इस तरह
    शुरुआत भी हो सकती है
    किसी नए सपने की
    या फिर सपनों भरी
    जिंदगी की
    सकारात्मक संदेश देती रचना।

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  2. वाह! इस कविता को पढ़ते पढ़ते अंत तक आपने मुस्कुराने पे मजबूर कर दिया
    बधाई

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  3. सुरुचिपूर्ण ब्लॉग और भावप्रवण कविताएँ. लिखती रहें.

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद् अरुणजी कि अपने मेरा ब्लॉग देखा और सराहा...आपकी टिप्पणी मेरे लिए निस्संदेह मूल्यवान है !
    धन्यवाद् पुनः

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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  6. वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.

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