खुबसूरत वादियों में
उदास और बेमन से
घूमते हुए
देखा , चट्टानों के बीच
गुलाबों को खिलते...
सूने दिल को
राहत महसूस हुई कुछ!
पीठ और पेट एक लिए
झुकी कमर और रूठी किस्मत
के साथ एक बहुत बुज़ुर्ग
औरत को देखा स्टेशन पे
भीख मांगते बेबस दयनीय...
खुद के सर पे
देव स्पर्श का आभास हुआ मुझे..!
एक निःसंतान दंपत्ति को
पूजा स्थलों में
माथा रगड़ते देखा,
अपनी पूर्णता पे गर्व हुआ मुझे!..
तूफान पीड़ितों को,घर से बेघर
और शोक संतप्त देखा,
अपनी सुरक्षा पर
निश्चिन्त हुई मै!
कुछ बंजारों को
घनघोर बारिश के बीच
त्रिपाल की छत तानते देखा
अपनी अ-पारंपरिक सोच पर
फख्र हुआ मुझे!
अब भी न जाने
क्यूँ उदास हूँ मै?
गहरी और मार्मिक बात.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना :)
gahri prastuti.
जवाब देंहटाएंअच्छे भावों से संयुक्त कविता।
जवाब देंहटाएंवन्दना जी आप कि भावाभिब्यक्ति बहुत अच्छी है |
जवाब देंहटाएंईशान जी, अनामिका जी, महेंद्र जी, दीप जी
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए आप लोगों का बहुत बहुत धन्यवाद.
दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ..............
जवाब देंहटाएंshukriya zeba
जवाब देंहटाएंvandana