कहते हैं,सुख के क्षण टुकड़ों में और छोटे होते हैं जो जितनी जल्दी आते हैं उतनी ही शीघ्रता से संतृप्त व् ,नगण्य हो पानी के बुलबुले की तरह फूट भी जाते हैं पर त्रास के पल काटे नहीं कटते! दुःख के पल ,बोझिल रात की तरह लम्बे होते जाते हैं ...काटना मुश्किल हो जाता है! सुख की तासीर ही यह है कि उसे हम और और प्राप्त करना चाहते हैं पर वो टिकता नहीं,वहीँ दुःख से पीछा छुड़ाने के लाख जतन के बावजूद वो हमारे दिलो दिमाग पर अरसे तक अपनी छाप छोड़ जाते हैं.जो अवचेतन तक गहरा जाती हैं.
विलियम शेक्सपिअर के मशहूर नाटक ''किंग लियर ''में अपनी चापलूस बेटियों को अपना साम्राज्य सौंप चुके राजा को ,जब अपनी कुटिल और स्वार्थी बेटियों की असलियत का पता पड़ता है तो उसका वर्णन अत्यंत मार्मिक किया गया है ....शब्दशः....
''इधर राजा की आँखों से आंसुओं की वर्षा हो रही थी,उधर आसमान में सहसा घनघोर घटायें घिर आईं!पल भर में तूफान गरजने लगे बिजलियाँ कड़कने लगीं,व् आसमान कटकर ज़मीन पर उतरने लगा!चिड़ियाँ घोंसले में सिमट गईं ...अगर कोई खुले आकाश तले खड़ा था तो वो था किंग लियर!वही लियर,जिस पर छत्र तानने के लिए आज से कुछ ही दिनों पहले सहस्त्रों हाथ आगे बढ़ते थे!तथा जिस पर चंवर डुलाने में लाखों अमीर अपना अहोभाग्य समझते थे,आज वही लियर नंगे असमान के तले खड़ा है और उसकी तरफ कोई देखता तक नहीं!
''शोक की अंतिम हद तक पहुँच जाने पर मनुष्य का विवेक जाता रहता है,""!लियर,पागलों की भांति बडबडाता हुआ तूफान में कूद पड़ा!
''आंधियों,तूफानों आओ...बहो...इतने वेग से कि यह आसमान धरती हिल जाये,घटाओं बरसो....कि ज़मीन का पाप तुम्हारी लहरों में समां जाये...संसार से मानव और कृतघ्नता का नाम सदा के लिए मिटा दो'''तूफानों को चीरता हुआ राजा अँधेरे में खो गया !
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अपकी ये पोस्ट भी मुझ पर एक गहरी छाप छोड गयी है जो शायद बार बार मुझे यहाँ ले आयेगी। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंकुछ नाटकों का बस कोई सानी नहीं होता.
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा और उच्च कोटि की पोस्ट, जो ब्लोगों के इस उथले जंगल के बीच ठंडी हवा के तरह छू कर चली गयी.
बधाई.
सुन्दर प्रसंग के द्वारा आपने बात कही है.
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