सदियों से सुन रही
दीवारें,
कान लगाये
ज़िंदगी की आहट
पत्तों की फुसफुसाहट
देख रही अपनी फटी फटी आँखों से
युगों से युगों तक ,
इंसानों के बेतरतीब जंगल,
और
पेड़ों को इंसानों के
ख्वाबों को सजाने ,
शहीद होते
अलग अलग युगों के
अलग अलग चेहरे
पर सपने वही
वही षड्यंत्र
वही अमरता की चाहत
गवाह हैं उसके
बेतुके ख्वाबों और
दुस्साहस की
छोटे से जीवन के
लम्बे चौड़े इंतजामों की
भारी भरकम युक्तियों
और मार काट की
खंडहर हो गए अब तो
अकेले सूने पड़े
किलों के
मोटे मज़बूत द्वार..दालान और बावड़ियाँ
सात सात द्वारों की वो पहरेदारी
कि पक्षी भी पर न मार सके
नहीं जानते वो बेचारे
कि अब ये सात सात दरवाजे और हवेली के पुख्ता सुरक्षा इंतजाम
शान हैं सिर्फ पुरातत्व की
रह गया है जरिया
पर्यटन विभाग का पेट भरने का
अब इंसान इन तरीकों के
मोहताज़ नहीं
पर किले हवेली की
खँडहर हो चुकी दीवारों को आज भी इंतज़ार है
उस दिन का ,जब
होगा मुकाबला
दुश्मन से
तब हमें साबित करना होगा खुद को
इंतजार है अब तक...
बेखबर नियती से
आज भी प्रतीक्षारत
धन्यवाद !संयोग ही है ये कि मैं भी ओशो के दर्शन से प्रभावित हूँ.मेरी व्यक्तिगत लाइब्रेरी मैं उनकी काफी पुस्तकें हैं....
जवाब देंहटाएंज़िंदगी मैं रोशनी की बहुत अहमियत होती है,पूछकर देखें उससे.जिसकी आँखों में रौशनी नहीं,न सिर्फ भौतिक बल्कि
मनुष्य के विचारों और सोच की शुरुआत का कारन भी यही रोशनी है (अवसादग्रस्त व्यक्ति समझता है इसकी अहमियत)आत्मिक ज्ञान या जाग्रति वहीं से होती है जहाँ उनके भीतर की ''रौशनी जगाने''वाला गुरु मिलता है....अत कह सकते हैं की आदि से अंत तक.शरीर से देह तक,देह से आत्मा तक सब खेल रोशनी का है (वर्ना बियाबान जंगल है)''सूर्य''उसी रौशनी का प्रदाता है.लाख ऑंखें हो.अंधेरों मैं अस्तित्वहीन ही तो हैं?
वंदना
thank you. u also write well. keep visiting my blogs.
जवाब देंहटाएंthanks
जवाब देंहटाएंवंदना जी
जवाब देंहटाएंअपने स्वार्थ की खातिर प्रकृति और पर्यावरण से खिलवाड़ की इंसानी फितरत को आपने बहुत सटीक तरीके से उतारा है.... यकीनन दुश्मन से मुकाबले की घड़ी आने ही वाली है
बहुत अच्छा लिखा है आपने, बधाई
धन्यवाद रत्नाकर जी !हम संवेदन शील लोग बस लिख ही सकते हैं(भड़ास या कुंठा कह सकते हैं)ज़ाहिर है , कर कुछ नहीं पाते.ये देश का दुर्भाग्य कहें या देशवासियों का या शायद दोनों का......
जवाब देंहटाएंवंदना
प्रशंसनीय ।
जवाब देंहटाएंthanks ,aruneshji
जवाब देंहटाएंखूबसूरत शब्द . शायद आदमी और हवेलियों में कोई बहुत लम्बा चौड़ा फर्क नहीं :)
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