Ahsaas
कैसे होता है ये
कि अचानक चीजों के
न सिर्फ अर्थ बदल जाते हैं
बल्कि
समूची तासीर बदल देती है
खुद को
चंद लम्हों मे
मसलन...रात पहले भी आती थी
अँधेरे की उंगली थामे
और उसके पीछे पीछे
चला आता था चाँद
दिया लिए चांदनी का
और फिर ,
तमाम कायनात
जगमगा उठती थी
प्रक्रति नतमस्तक हो जाती थी
इश्वर के इस
चमत्कार पर
पर फुर्सत ही किसे थी की
खूबसूरती को
ज़हन मैं उतारने की,
रात के काले अँधेरे के
घूँघट से झांकती सुबह
खुबसूरत आगाज़ दिन का
पर हमेशा रात ,मेरे लिए
सुबह के इंतजामों का पर्याय से ज्यादा
कुछ नहीं रही
और सुबह?
मशीन की सुइयों पर
दौडती ज़िंदगी !
कल अचानक
''गुलमोहर''और चांदनी को
गुफ्तगू करते देखा और
रात की रानी की
खुशबू मे घुली चांदनी को
खिलखिलाते
तब जाना '' खुबसूरत ''लफ्ज़
के इजाद का मतलब
काश कि
इसी तरह मुस्कुराये
कायनात मेरे साथ
चांदनी गुफ्तगू करे मुझसे
और
सुबह थपकी दे जगाये
गहरी नींद से मुझे
दिल को छू लिया !
जवाब देंहटाएंआज कल गुलमोहर और चांदनी को गुफ्तगू करते देखने वाले कम खुशनसीब मिलते हैं.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत पंक्तियों के लिए धन्यवाद.
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विवेक
जवाब देंहटाएंदरअसल व्यस्तता के बीच कभी फुर्सत ही नहीं मिली,प्रकृति और खुबसूरत रात को मंत्र मुग्ध हो देखने कि.....जब देखि तो....अवर्णनीय सच...
thanks ishan
जवाब देंहटाएंyou are a very good reader
thanks again