खिड़की
उस जंगल में ;जो बियाबान था बहुत
डरावना भी था
(दर असल उतना डरावना था नहीं;
जितना चेताया जाता था ;
किसी भविष्यगत दुर्घटना से
बचाने के लिए ,
बड़ों बुजुर्गों की
कूटनीति के तहत );
जैसे पौराणिक किस्सों के
कुछ अंश,
या फिर कोठरी की दीवारों पर टंगे
जंगली जानवरों पर विराजे
देवी देवताओं के चित्र
नतीजतन
घर की खिडकियों को
रखा जाता था बंद
ताकि.बाहरी हवा से
न हो स्वास्थ्य को कोई हानि
न बौछारों से गीली हों
कोठरी की कच्ची ज़मीन
न ही खिड़की से आते जाते राहगीर से
खुली खिड़की करे चुगली
अन्दर बैठी जागीरों की
समय के बूढ़े बुज़ुर्ग ने
करवट ली जम्हाई ले
खोल दी गईं खिड़कियाँ
वो सूरज जो
रोज़ खिड़की के बंद द्वार पर सर पटक पटक
अस्त हो जाया करता था ;
उसी की स्वच्छंद किरणें न सिर्फ आज़ादी से
टहल रही हैं कोठरी भर में
,बल्कि
कर रही हैं अठखेलियाँ
उन तमाम चीज़ों से जो
बंद खिड़की के अन्धकार में
भुला चुके थे अपना ही रंग
दीमक की लकीरों से
भदरंग हो चूका था
उनका वुजूद,पर
जबसे हटाये हैं पट खिडकियों के
अब रोशनी है,ताजगी है
निगाहों के लिए
हरी भरी धरती है
यहाँ से वहां तक फ़ैली
बस नहीं है तो
बचाव कीट पतंगों से जो
उन्ही खिडकियों से आते हैं
रोज़ बे रोक टोक
रोशनी और हवा के साथ साथ
और ज़माने भर की धूल
बिखर जाती है चंद पलों में
कोठरी भर में
अब तो देवी देवता भी ने
कोठरी से निकल
विराज चुके हैं बड़े बड़े
महलों में
सोने चांदी के
सिंघासनों पर और
देवी देवताओं के वे चहेते पशु पक्षी
और भटक रहे हैं जंगल भर में
ढूढ़ते अपना शिकार
जब भी मानसिक , शारीरिक, भावनात्मक या आध्यात्मिक आजादी की बात की जायेगी, बहुत मुमकिन है खिडकियों से ही शुरू की जायेगी.
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