हर कदम पर रही हूँ इक फासले पर
ज़िन्दगी की रफ़्तार कुछ ऐसी रही
वक़्त तो आया हरेक चीज़ का मेरा भी एय दोस्त
आया मगर बेवक्त .....मै तनहा रही
तौलती मैं देह और मन की हदें
ग्लानी की परतों तले दबती रही
भीड़ से रिश्तों की ,निकल आई तो हूँ ,मैं दूर बहुत
याद एक दोस्त की ,अक्सर मगर आती रही
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
जवाब देंहटाएंare vandna ji aap to mere nanihal ki hai....
जवाब देंहटाएंवो लोग बहुत अच्छे होते है जो अपने दोस्तों को नहीं भूलते . बहुत मतलबी है ये दुनिया . सुन्दर और भावप्रवण कविता.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आशीषजी
जवाब देंहटाएंअपने सच कहा,मेरे लिए दोस्त और दोस्ती ये नाम बहुत मूल्यवान रहे,शायद अच्छा ही हुआ ,क्यूँ की ये मनुष्य की फितरत मैं शामिल है की जो चीज़ हासिल हो जाती है उसका मूल्य नगण्य हो जाता है...ज़ाहिर है की दोस्ती के मामले मे काफी निर्धन रही इसीलिए ये मेरे लिए आज भी अमोल है
वंदना
वंदना जी
जवाब देंहटाएंदोस्त की कमी का सटीक और मार्मिक चित्रण किया है आपने यकीनन एक सच्चा दोस्त मिल जाए तो ज़िंदगी की रंज-ओ-गम से भरी राहों पे भी फूल खिल जाते हैं, आपकी लेखनी का एक एक शब्द आप के गहन चिंतन को दर्शाता है
बधाई
thanks again for this nice comment,,,its a valueble comment for me ,sir
जवाब देंहटाएंvandana
"तौलती मैं देह और मन की हदें
जवाब देंहटाएंग्लानी की परतों तले दबती रही
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याद एक दोस्त की, अक्सर मगर आती रही"
अंतर्मन के कपाटों पर दस्तक देती मार्मिक प्रस्तुति