23 सितंबर 2010

मै

सांस क्यूँ थम नहीं जाती
जिंदगी रुक नहीं जाती
मै भी नादाँ थी,न समझी
हर नब्ज़ को समय की
टटोलती अपनी कलाई को,
मै एक युग गँवा बैठी!
दोस्ती जब भी की मैंने
बेसहारा और हुई मैं,
दोस्त का मर्म समझने मै,
ज़िन्दगी यूँ तमाम कर दी!
अब तो हालात ही हैं दोस्त,
जो भी हैं,जैसे भी हैं
उन्हीं के साथ चलती हूँ,
उन्ही से गुफ्तगू करती!

8 टिप्‍पणियां:

  1. आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-


    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  2. धन्यवाद संजय जी
    मेरे ब्लॉग को पढने और टिप्पणी देने का...निस्संदेह आप जैसे सुधी पाठक ही मेरी प्रेरणा हैं

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  3. अब तो हालात ही हैं दोस्त,
    जो भी हैं,जैसे भी हैं
    उन्हीं के साथ चलती हूँ,
    उन्ही से गुफ्तगू करती

    क्या बात है! आप बेहद अच्छा लिखती हैं. कलम को इतने दर्द की सियाही में डुबोने के बाद भी शब्दों की दुल्हन को खूबसूरती से तलाशने का आपके भीतर गज़ब का माद्दाहै

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  4. अब तो हालात ही हैं दोस्त,
    जो भी हैं,जैसे भी हैं
    उन्हीं के साथ चलती हूँ,
    उन्ही से गुफ्तगू करती
    bahut hee khoobsurat ehasas ko aapne shabdo ke libas me sajaya hai ...khoobsurat prayas ke liye badhayi...

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  5. जब पाठक अपनी संवेदनाओं को किसी कविता में शब्दों के रूप में पा जाता है तो उसे सुखद अनुभूति होती है। आपकी इस कविता में वो बात है ।

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