सांस क्यूँ थम नहीं जाती
जिंदगी रुक नहीं जाती
मै भी नादाँ थी,न समझी
हर नब्ज़ को समय की
टटोलती अपनी कलाई को,
मै एक युग गँवा बैठी!
दोस्ती जब भी की मैंने
बेसहारा और हुई मैं,
दोस्त का मर्म समझने मै,
ज़िन्दगी यूँ तमाम कर दी!
अब तो हालात ही हैं दोस्त,
जो भी हैं,जैसे भी हैं
उन्हीं के साथ चलती हूँ,
उन्ही से गुफ्तगू करती!
Beautiful as always.
जवाब देंहटाएंIt is pleasure reading your poems.
आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
जवाब देंहटाएंबधाई.
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
धन्यवाद संजय जी
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग को पढने और टिप्पणी देने का...निस्संदेह आप जैसे सुधी पाठक ही मेरी प्रेरणा हैं
अब तो हालात ही हैं दोस्त,
जवाब देंहटाएंजो भी हैं,जैसे भी हैं
उन्हीं के साथ चलती हूँ,
उन्ही से गुफ्तगू करती
क्या बात है! आप बेहद अच्छा लिखती हैं. कलम को इतने दर्द की सियाही में डुबोने के बाद भी शब्दों की दुल्हन को खूबसूरती से तलाशने का आपके भीतर गज़ब का माद्दाहै
thanks ratnakarji
जवाब देंहटाएंअब तो हालात ही हैं दोस्त,
जवाब देंहटाएंजो भी हैं,जैसे भी हैं
उन्हीं के साथ चलती हूँ,
उन्ही से गुफ्तगू करती
bahut hee khoobsurat ehasas ko aapne shabdo ke libas me sajaya hai ...khoobsurat prayas ke liye badhayi...
जब पाठक अपनी संवेदनाओं को किसी कविता में शब्दों के रूप में पा जाता है तो उसे सुखद अनुभूति होती है। आपकी इस कविता में वो बात है ।
जवाब देंहटाएंdhanywad vijay ji
जवाब देंहटाएं