5 अक्तूबर 2010

एक रात की सुबह

वो एक सर्द
कोहरे भरी रात थी,
तिस पर लगातार होती
हलकी बूंदा बांदी ने
वातावरण को और धूमिल
बना दिया था ,
इतना ,कि सामने के घर की
अमूमन देर तक
,रोशन रहने वाली
खिड़की जो ,
अक्सर मेरे रात काटने का
हौसला हो जाया करती थी,
कुहरे में गायब हो
उसी का एक हिस्सा बन
गई थी!
शाम के धुंधलके में
मेरे साथ सैर पर
जाने वाले,
खूंटी पर टंगे उदास कपडे
मुझे अपलक घूर रहे थे!
छत के नीचे वाले आले में,
रात को कलरव से
आबाद रहने वाला
चिड़िया का घोंसला
जो अपनी चाहचहातों से
मेरे मन और नींद में
खलल पैदा करता था,
उसका खालीपन
आज मुझे काटने को
आ रहा था!
सिरहाने रखी
उलटी किताब के उड़ते
पन्नों
का शोर मुझे
बैचेन कर रहा था!
ये एक बैचेन रात थी,
ज़िन्दगी की तरह!
आज भी बारिश आते ही
बत्ती रूठकर चली गई थी
हमेशा की तरह!
हवा से चीत्कार करते
खुले दरवाज़े और
खिड़कियाँ मेरे बचे खुचे
धैर्य की परीक्षा ले रहे थे
और मुझे उठने को
उकसा रहे थे,
पर जिद्दी मन को भला कोई
धमका सका है?
अचंभित करने वाला सपना था वो,
जिसने मुझे नींद का अहसास कराया था,
और जब आंख खुली तो
रोशन खिड़की का अस्तित्व
ख़त्म हो चुका था,
आले का घोंसला आबाद था,
धूप की चमक
पूरी कायनात को
रोशन कर चुकी थी,
खिड़की के बाहर गुलाब की
ओस भरी पत्तियां
अपनी खूबसूरती पर
इठलाती मुस्कुरा रही थीं!
मैं हैरान था ,
रात सपना थी
या जो अब देख रहा हूँ
वो सपना है?

8 टिप्‍पणियां:

  1. मैं हैरान था ,
    रात सपना थी
    या जो अब देख रहा हूँ
    वो सपना है?
    --
    बहुत सुन्दर रचना!

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर सपना ..
    सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह्………आप तो अपने साथ हमे भी बहा ले गये अपने सपने की दुनिया मे…………खूबसूरत ख्याल्।

    जवाब देंहटाएं
  4. भावों को सुंदर अभिव्यक्ति प्रदान कि है आपने.

    ये जिंदगी ही निकल जाती है सपनो में.

    जवाब देंहटाएं
  5. चेतना के स्वर मुखरित करती रचना के लिए साधुवाद की पात्र हैं आप.

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छी लगी एक स्वपन सरीखी अनुभूति

    जवाब देंहटाएं
  7. आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं

    जवाब देंहटाएं